SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 654
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६३ और उसका प्रसार राजस्थान में जैनधर्म का ऐतिहासिक महत्त्व । उसने जयपुर में १८०४ ई. में सैकड़ों मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई । बखतराम भी जगतसिंह का दिवान रहा । उसने जयपुर में चोड़े रास्ते में यशोदानंदजी का जैनमंदिर बनवाया। इसके अतिरिक्त जयपुर राज्य के छोटे ठिकाने जैसे जोबनेर, मालपुरा, रेवासा, चाकसू, टोडा रायसिंह, बैराठ आदि में जागीरदारों की प्रेरणा से जैनधर्म बहुत फैला । इन स्थानों पर शास्त्रों को लिपिबद्ध करवाया गया। अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा हुई तथा मंदिर बनाये गये । ___ अलवर राज्य में जैनधर्म:-अलवर राज्य में ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी की जैन मूर्तियाँ मिलती हैं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अलवर राज्य का जैनधर्म से संबंध बहुत प्राचीन समय से है, किन्तु ये मूर्तियाँ तो बाहर से भी लायी हुई हो सकती हैं । पन्द्रहवीं व सोलहवीं शताब्दी से कुछ साधनों के आधार पर इस धर्म का इस राज्य से सम्बन्ध स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । ये साधन तीन भागों में विभाजित किये जा सकते हैं ( १ ) तीर्थमालाओं में अलवर रावण पार्श्वनाथ के रूप में (२) अलवर में लिखा हुआ जैन साहित्य ( ३ ) शिलालेखों में इसका उल्लेख । ___तीर्थमालाओं में अलवर का वर्णन रावण पार्श्वनाथ तीर्थ के रूप में हुआ है । इसका अर्थ है कि रावणने इस स्थान पर पार्श्वनाथ की मूर्ति की पूजा की थी। यह सब पौराणिक है, क्योंकि रावण तो पार्श्वनाथ के बहुत पहले हुआ था । इस प्रकार की सूचना अलवर को एक धार्मिक केन्द्र के रूप में अवश्य बतलाती है । कुछ रचनायें जैसे मौन एकादशी. साधुकीर्तिद्वारा १५६७ ई. में, शिवचन्द्रद्वारा मुखमण्डलवृति १६४२ में, बालचन्द्रद्वारा देवकुमार चौपाई १६२५ में और महिपाल चौपाई विनयचन्द्रद्वारा १८२१ में अलवर में लिखी हुई प्राप्त होती हैं । हंसदूत लघुसंघत्रयी और लघुक्षेत्रसमास शास्त्रों की प्रतियें क्रमशः १५४३ ई. और १५४६ ई. में लिखी गई। ___ इस स्थान का उल्लेख सोलहवीं शताब्दी के शिलालेखों में भी होता है। १५३१ ई. में एक अलवर के श्रावकने सुमतिनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई । १६२८ का एक शिलालेख अलवर में रावण पार्श्वनाथ के मंदिर का उल्लेख करता है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy