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________________ ५६० भीमद् विजयराजेन्द्ररि-स्मारक-ग्रंथ जैनधर्म की प्राचीनता अन्य राजाओं के समय में भी मंदिरों का निर्माण हुआ तथा उनमें अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा हुई । पादुकायें भी पूजने के लिए बनाई गई । बड़े बड़े शास्त्रभंडार संस्कृति की रक्षा करने के लिए स्थापित किये गए। जोधपुर और बीकानेर राज्य में जैनधर्म-प्राचीन समय में साँचोर और बाड़मेर में जैनधर्म प्रचलित था। तेरहवीं शताब्दी में सामंतसिंह के समय में बाड़मेर के जैन मंदिर के स्तंभ का निर्माण हुआ। १३३४ ई. में जिनप्रभसूरि यहां पर आये जिनका राजा तथा प्रजाने स्वागत किया । सांचोर का प्राचीन नाम सत्यपुर था । छोगा नाम के ओसवाल भंडारीने ११६८ ई. में भीमदेव के राज्य में यहां के महावीर के मंदिर की चतुष्किका का पुनः निर्माण किया । १३३४ ई. में जिनपद्मसूरि सत्यपुर आये । यहां के राजा हरिपालदेवने इनका स्वागत किया। तेरहवीं शताब्दी में रत्नपुर में भी जैनधर्म विद्यमान था । १२७६ ई. में चाचिगदेव के राज्य में धीना और उदलने अजितदेवसूरि के उपदेशों से प्रभावित हो कर पार्श्वनाथ के मंदिर को भूमि दान में दी । १२९१ ई. में सामवंतसिंह के राज्य में यहां के श्रावकोंने इसी मंदिर को पुनः ठीक करवाया तथा आर्थिक सहायता दी । नगर में भी जैनधर्म का अच्छा प्रभाव था। यह स्थान प्राचीन समय में वीरमपुर के नाम से प्रसिद्ध था। १४५९ ई. में राऊड के राज्य में मोदराज गणी के उपदेश से गोविन्दराजने महावीर के मंदिर को दान दिया। राउल कुषकरण के समय १५११ ई. में यहां के संघने विमलनाथ के मंदिर का रंगमंडप बनवाया । राउल मेघविजय के राज्य में शांतिनाथ के मंदिर का नलिमंडप बनकर १५५७ ई. में तैयार हुआ । १६०९ ई. में राउल तेजसिंह के समय इसी मंदिर को ठीक कराया। इस स्थान के संघने राउल जगमल के समय १६२१ ई. में महावीर के मंदिर में चतुष्किका का निर्माण किया । १६२४ ई. में इसी राजा के राज्य में यहां के जैन संघने पार्श्वनाथ के मंदिर में निर्गम चतुष्किका तथा तीन खिडकियों का निर्माण किया। जोधपुर के राठोड़ राजाओं की धार्मिक उदार नीति के कारण भी जैनधर्म की अच्छी उन्नति हुई । १६१२ ई. में सूर्यसिंह के राज्य में वस्तुपाल ने पार्श्वनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा की। भामाने अपने परिवार के साथ कापड़ा* में १६२१ ई. में गजसिंह के राज्य में पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा की। यह शिलालेख ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । उससे पता _चलता है कि सिरोही राज्य का कापड़ा ग्राम अब जोधपुर राज्य के अधिकार में आ गया था। * कापा' अगर ‘कापर्दा' है तो वह सिरोही राज्य में कभी नहीं रहा। संपा० दौलतसिंह लोढ़ा ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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