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________________ ५४२ भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ जैनधर्म की प्राचीनता 'पुराण' ) जिसका संबंध प्राचीन छेद की हुई रजत मुद्रा से है। 'सतेरक ' भी एक उल्लेखनीय शब्द है जिसके बारे में डा. मोतीचन्द्रने मुझे कृपा करके बतलाया है कि इसका संबंध युनानी स्ततेर ( Stater ) से है। सातवीं शताब्दी A. D. में रचित 'निशीथचूर्णि' ( Nisitheirni ) में कहा गया है " कवडुगा से दिजंति, ताझमयं वा जं णाणगं ववहरंति, तं दिजंति । जहा दक्खिणावहे कागणी रुप्पमयं जहा भिल्लमाले चम्मलातो।" __ इस प्रकार इस में · कपईकों ' ( Kaparddakas ) अथवा ' कोवरियों' (Cowries) का उल्लेख है और कहा गया है कि व्यापार ताम्रमुद्राओं ( Nanakam=नाणकम् ) की सहायता से भी किया जाता था, यथाः-दक्षिण पथ में ' कागणि ' से और भिल्लमाल में रजतमुद्रा अर्थात् 'चम्मलात' ( Chammalata ) से । डा. सन्देसरने एक अत्यन्त प्रवीण प्रस्ताव किया है कि ब्राह्मी के 'व' और 'च' में सादृष्य होने के कारण बहुत संभव है कि-वम्मलात ' को , चम्मलान ' समझ लिया गया हो; इस हालत में इनका संबंध — वर्मलाट ' की मुद्रा से स्थापित किया जा सकता है जिसको कि हम सातवीं शताब्दी A. D. के वसन्तगन्धा शिलालेख से भिल्लमाल के 'चापोत्कट' (Capotkata) शासक के रूप में जानते हैं। ___ निशीथचूर्णि' में · मयूराक ' ( Mayāranka) मुद्राओं का भी उल्लेख है जो अवश्य ही कुमारगुप्त प्रथम की मुद्राएं रही होंगी । ' आवश्यकचूर्णि' में ('निशीथचूर्णि' के रचयिता जिनदास द्वारा ही ७ वीं शताब्दी में रचित ) कृत्रिम 'रूवगों' अथवा 'रुप्यकों' का निर्देश मिलता है। इस में एक जगह 'दीनारों से भरी हुई एक सोने की रकाबी और एक दूसरी जगह एक हजार 'दीनारों' का भी वर्णन मिलता है। फिर 'ड्रमकों' से परि. पूर्ण एक 'नौलओं' ( naulao, Sk. Nakulaka=' नकुलक' ) अर्थात् रुपयों की “नळी २६. 'जैन आगमोमन गुजरात ' ( गुजराती में ) by डा. बी. जे० संदेसरा (अहमदाबाद. १९५२) p. 180 f. 1 'लेखपद्धति' के आधारपर डा. सन्देसरा ने बताया है कि 'श्रीमल ' ( भिल्लमाल ) दम्भ को 'परौपथ द्रम्म कहा जाता था, संदेसर op. cit. p. 181 और JNSI, Vol. V111, pt. 2, pp. 932 ff. 1 शान्ति सूरि की 'उत्तराध्यनसूत्र' पर लिखी हुई वृत्ति (Vrtti on the Uttaradnyayana-Sutra ) (पृ. २७२) के अनुसार, जिसका कि निर्माण ११ वीं शताब्दी A. D. में हुवा था। एक 'काकिणी' २० कपकों ( Kaparddakas ) के बराबर है।। २७. 'नौलओ' (नकुलक ) शब्द पुरानी गुजराती में ' ( Noli ) वन जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि स्वयं धनाधिपति कुबेर भी प्रायः अपने हाथ में एक 'नकुल' रखते हैं। इसी
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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