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________________ ५०५ और उसका प्रसार प्राऐतिहासिक काल में जैनधर्म । यदि ऐसा है तो शायद पाठक कहें कि आजकल भारतीय पाठ्य क्रममें जो इतिहास पड़ाया जाता है, उसे मानिये । किन्तु वह भी माननीय नहीं । उस इतिहास को उन विदेशी विद्वानों के मतानुसार रचा गया है जो भारतीय धर्मों की परम्परा से अपरिचित थे। उन्होंने एक समय में जैनधर्म की उत्पत्ति मध्यकाल में घोषित करने की भारी गलती की थी। उपरान्त उसे बौद्ध धर्म की शाखा भी उन्होंने कहा और अब पढ़ाया जाता है कि वैदिकीय, याज्ञिकहिंसा के विरोध में भगवान महावीरने जैनधर्म को चलायो । यह ऐतिहासिक मान्यतायें नितान्त भ्रममूलक हैं; अतः इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ___ इस अवस्था में हम स्वाधीनरूप में स्पष्ट साक्षी के आधार से विचार करेंगे कि जिससे जैनधर्म के प्राङ् ऐतिहासिक कालीन अस्तित्व को प्रमाणित किया जा सके, क्योंकि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव प्राइ ऐतिहासिक काल में ही हुये हैं । इस प्रकरण को सिद्ध करने के लिये जैनेतर शास्त्रों की साक्षी के अतिरिक्त भारतीय पुरातत्व के प्रमाण भी हम उपस्थित करेंगे। हजारों वषा पहले पाषाण पर उत्कीर्ण लेख और मूर्तियां जैनधर्म को प्राङ्-ऐतिहासिक काल में प्रचलित सिद्ध करते हैं। पहले ही वैदिक साहित्य को लीजिये । वेदों के निम्नलिखित उल्लेख ऋषभ अथवा वृषभदेव नामक महापुरुष का अस्तित्व सिद्ध करते हैं: १. 'ऋषभं मा समानानां सपत्नानां विषासहिम् । हन्तारं शत्रूणां कृधि विराज गोपितं गवाम् ॥' ___ऋग्वेद, ८। ८ । २४ २. ' अहोप्नुचं वृषभं यज्ञियानां विराजन्तं प्रथममध्वराणाम् ।। अपां नपातमश्विनी हुंचे धिय इन्द्रियेण इन्द्रियं दक्षमोजः॥' -अथर्ववेद, १९ । ४२।४ ' यजुर्वेद ' (अ. २०, मंत्र ४६) में वृषभदेव का उल्लेख हुआ है । इन उल्लेखों से स्पष्ट है कि सम्पूर्ण पापों से मुक्त अहिंसक वृत्तियों में प्रथम राजा आदित्यस्वरूप श्री वृषभ १. हमारे राष्ट्रपति महोदय डॉ. राजेन्द्रप्रसादजीने भी कुछ ऐसा ही भाव दर्शाया है; यद्यपि उन्होंने भगवान् महावीर को आधुनिक जैनधर्म ( Modern Jainism) का संस्थापक ( Founder ) लिखा है। (At the feet of Mahatma Gandhi, p. 174) मा. पं. जवाहरलालजी नेहरूने यद्यपि जैन धर्म को हिन्दू धर्म से निराला लिखा है; परंतु उसे भगवान महावीर से चला बताने की भ्रान्ति से वह भी बचे नहीं । ( हिन्दुस्तान की कहानी देखो ) पृ. १३६-१३८. इसी अनुरूप आधुनिक ऐतिहासिक पाठ्यपुस्तकों में कथन है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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