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________________ और जैनाचार्य पू. उपाध्याय श्री मेघविजयजी गुम्फिता अईद्गीता । ४८३. अर्हन्त भगवानने दश प्रकार के अस्वाध्याय का निर्देश किया है। इससे प्रतीत होता है कि भगवानने द्रव्यशौच और भावशौच इन दोनों को स्वीकृत किया है। द्रव्यशौच और भावशौच इन दोनों की सापेक्षता का जैन शासन में सहज भी कम मूल्य नहीं है । द्रव्यशौच, पानी-मिट्टि आदि से बाह्यशुद्धि और भावशौच, ध्यान-चिंतन से आत्मशुद्धि । ब्रह्मकाण्ड के पंद्रहवे अध्याय के पंद्रहवे श्लोक में उपाध्यायजीने कहा है कि " जैना अपि द्रव्यमेकं प्रपन्ना जगतीतले । धर्मोऽधर्मोऽस्तिकायो वा तथैक्यं ब्रह्मणे मतम् ॥ १५॥" सापेक्षरूप से विचार करते जैन सम्मत द्रव्यवाद और वेदान्त सम्मत ब्रह्मवाद दोनों एक समान ही हैं। इतना कहकर वे वेदान्त और जैन दर्शन का पारस्परिक सामञ्जस्य स्थापित करते हैं। वे अन्योन्य के सर्जनात्मक और निषेधात्मक विवाद में पगरण नहीं करते। लेकिन उन दोनों की सम्मति दर्शाते हैं। इसी संगति से उनका मानसिक उदार आशय आप ही प्रदर्शित होता जाता है । कर्मकाण्ड के अठारहवें अध्याय के श्लोक सातमें वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि " द्रव्यक्षेत्रकालभावाऽपेक्षया बहुधा स्थितिः । आचाराणां दृश्यसेऽसौ न वादस्तत्र सादरः ॥७॥" आचारों की भिन्नता, विध-विध क्रियाओं की भिन्नता और नाना प्रकार की अनुष्ठान भिन्नताओं की महत्ता स्थापित करने की नहीं है और उनपर चर्चा करना उचित नहीं है। आचार-क्रिया आदि अनुष्ठान की जो भिन्नता दिखायी पडती है वह द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव की अपेक्षा से दिखायी पडती ह । इसलीये किसी भी आत्मार्थी को स्वयं आत्मशुद्धि को छोडकर उनके वादविवाद के चक्कर में पड़े यह आदरणीय नहीं है। उनका यह विचार उनके ही समय में लाभदायी था, इतना ही नहीं, बरके वर्तमान युग में भी वही विचार हम सब के लिये इतना ही लाभदायी है । इसी पूर्ववर्ती वाणी-विचार से संपृक्त रहकर हम सब मिलकर शक्य सत्प्रवृत्ति करेंगे तो सर्व के लिये श्रेयस्कर होगा। उपाध्यायजीने १९ वे अध्याय के श्लोक ११-१२ में उपनिषद की एक ऐसी ही सुन्दर उक्ति का विवेचन किया है । वह उक्ति यह है " आत्मा वा अहो श्रोतव्यः मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः ।" . इसका जैन दृष्टि से विवेचन करते समय श्रवण, मनन और निदिध्यासन किसे कहना, इसके संबंध में उन्होंने अद्भूत विवेचन किया है
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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