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________________ ३८१ भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ दर्शन और जैन दर्शन में उक्त योगांगों का आगमविहित स्वरूप क्या है ?, बस इसी स्थूल विषय का दिग्दर्शन यथामति करवाना ही इस लघु निबन्ध का उद्देश्य है। १ यमा--योग के आठ अंगों में सर्वप्रथम स्थान यम का है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पांचों महाव्रतों की संज्ञा 'यम' है। जैनागमों में इन पांचों की महाव्रत और अणुव्रत संज्ञा है । जैनागमों में और पातंजलयोगदर्शन में इस विषय में कहीं-कहीं कचित्त वर्णन-शैली की भिन्नता के सिवाय कुछ भेद नहीं है । उक्त पांचों यमों (ब्रतों) को त्रिकरण-त्रियोगसे पालन करनेवाला सर्वविरति-साधु-श्रमण-भिक्षु और देशतः परिपालन करने वाला देशविरति-श्रमणोपासक या श्रावक कहलाता है। (१) अहिंसा--पांच यमों में प्रथम स्थान अहिंसा का है । " प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा" अर्थात् प्रमत्तयोग से होनेवाले प्राणवधको, वह सूक्ष्म का हो या बादर का-त्रस का हो या स्थावर का, हिंसा कहते हैं। हिंसा की व्याख्या कारण और कार्य इन दो भेदों से की गई है। प्रमत्तयोग-रागद्वेष या असावधान प्रवृतिकारण है और हिंसाकार्य। तात्पर्य यह है कि प्रमत्तभाव में होनेवाले प्राणीवधको हिंसा कहते हैं। ठीक इस से विरुद्ध अप्रमत्तभाव में रमण करते हुये रागद्वेषावस्था से परे रह कर प्राणी मात्र को कष्ट - नहीं पहुंचाना अहिंसा है। (२) सत्य--असदभिधानमनृतम् । असत्य बोलने को अमृत कहते हैं। भय, हास्य, क्रोध, लोभ, राग और द्वेषाभिभूत हो सत्य का गोपन करते हुये जो वचन कहा जाय वह असत्य है । और विचारपूर्वक, निर्भय हो, क्रोधादि के आवेश से रहित हो तथा अयोग्य प्रपंचों से रहित होकर जो वचन हित, मित और मधुर गुणों से समन्वित कर के कहा जाय वह सत्य है । वह सत्य भी असत्य है कि जो पराये को दुःखदायी सिद्ध हो । सत्य के श्री स्थानाङ्गसूत्र में दश प्रकार दिखलाये हैं:-१ जनपद सत्य । २ सम्मत्त सत्य । ३ स्थापना सत्य । ४ नाम सत्य । ५ रूप सत्य । ६ प्रतीत सत्य । ७ व्यवहार सत्य । ८ भाव सत्य । ९ योग सस्य और १० उपमान सत्य । (३) अस्तेयः- अदत्तादानं स्तेयम् " वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना ही वस्तु ग्रहण करना, फिर वह अल्प हो या बहुत, पाषाण हो या रत्न, छोटी हो या बड़ी, ६-दसविहे सच्चे पणत्ते, तं जहाजणवय सम्मय ठवण ना रूवे पडुच्च सच्चे य । ववहार भाव जोगे, दसमें ओबम्मसचे य ॥ २
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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