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________________ संस्कृति पूर्वेशिया में भारतीय संस्कृति । ३७९ उनके सहायकोंने ५०० से अधिक ग्रन्थों का चीनी में अनुवाद किया । केवल भारतीय ही नहीं, किन्तु मध्येशिया, तुर्किस्थान और स्वयं चीन के पण्डितोंने धर्मरक्ष आदि संस्कृत नाम धारण किए और भारतधर्म की सेवा की। अमिताभ और अवलोकितेश्वर के संप्रदायों का आरम्भ हुआ। सद्धर्मपुण्डरीक और पंचविंशति साहसिका--प्रज्ञापारमिता जैसे जटिल और दुरूह किन्तु युगप्रवर्तक महान् ग्रन्थों का चीन के जीवन में प्रवेश हुआ। दक्षिण में नानकिंग आरम्भ से ही भारतधर्म का केन्द्र रहा। विक्रमाब्द ३७४ में प्राच्य चिन् वंश की अरुणिमा के साथ भारतधर्म का दीप भी चमक उठा। भारतीय विद्वानों का नानकिंग में तांता बंध गया । राजपुत्र श्रीमित्रने राज्यभार छोड़ कर धर्मसेवा को अपनाया और उत्तर चीन से होता हुआ नानकिंग में आ पहुंचा । श्रीमित्र तान्त्रिक था । इसीने चीन में तन्त्र का प्रसार किया। तान्त्रिक मन्त्रों अथवा धारणियों का इसने चीनियों को शुद्ध उच्चारण सिखलाया । इनकी विश्वविख्यात धारणी महामायूरी विद्याराज्ञी है। इन्हीं दिनों धर्मरत्नने आगम साहित्य के ११० संस्कृत ग्रन्थों का चीनी में भाषान्तर किया। इस युग में उत्तर और दक्षिण दोनों ही भागों में आगमों का अनुवाद बड़े वेग से चला । इनमें से गौतम संघदेव कश्मीर के निवासी थे । संघदेव सर्वास्तिवाद के अनुयायी थे। उन्होंने ही चीन में भारतीय दर्शन का श्रीगणेश किया तथा ज्ञानप्रस्थान और महाविभाषा जैसे अभिधर्म के मुख्य अन्थों का चीनी में भाषान्तर किया। चीनी साहित्य में इससे पूर्व दर्शनशास्त्र का सर्वथा अभाव था, इस अभाव की पूर्ति संघदेव और उनके अनुयायियों ने की । इनके काम को बुद्धभद्रने आगे बढ़ाया। बुद्धभद्र का जन्म कपिलवस्तु में हुआ था । ये शाक्यमुनि के पितृव्य अमृतोदन के वंशज थे । कश्मीर में रह कर इन्होंने विनय का अध्ययन किया । जब प्रसिद्ध चीनी यात्री फाहियेन कश्मीर में आए और इनके गंभीर पाण्डित्य का साक्षात् किया तो प्रार्थना की कि भगवन् चीन में चलिए और प्रवचन कीजिए । उत्तर भारतखण्ड को पार करते हुए गंगासागर संगम के समीप से बुद्धभद्रने जलयान पर पदार्पण किया और वहां से टोंकिन पहुंचे और टोकिन से चीन । चीन में उनका कूचा के भिक्षु कुमारजीव से शास्त्रार्थ हुआ और तब से उनकी ख्याति आठों दिशाओं में फैल गई। ये चीन में अवतंसक सम्प्रदाय के प्रवर्तक बने । संक्षेप में इन का सिद्धान्त निम्न प्रकार है। प्रत्येक भूमि के कण में असंख्य बुद्ध विद्यमान हैं जो अवर्णनीय उदात्त-भावपूर्ण असंख्य लोकों की अभिव्यक्ति करते हैं । इनका आभास एक क्षण में और एक विचारसूत्र में संग्रथित है। ये सूत्र, भूत व वर्तमान और भविष्यत् के समस्त कल्पों की प्रन्थि हैं। निखिल
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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