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________________ जैन धर्म में स्त्रियों को समान अधिकार सावलिया विहारी लाल वर्मा एम. ए, बी. एल, एम. एल. सी. अनादि काल से संसार में स्त्रियों पर अन्याय और अत्याचार होता आया है। यद्यपि वेद के मन्त्रों के दृष्टा कतिपय स्त्रियां हुईं, तथापि वैदिक काल में भी स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में समान अधिकार प्राप्त नहीं था। पौराणिक काल में तो स्त्रियों की जीवनपर्यन्त पुरुषों के आधीन रहने की व्यवस्था की गई और वेद और शास्त्र के पढ़ने के अधिकार से वे वञ्चित रखी गयीं। ___ किन्तु भारत के महान् धर्मप्रवर्तकों में एक भगवान् महावीर स्वामीने ही स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार दिया। आप समझते थे कि सन्यास का, ब्रह्मचर्य का, मोक्ष का अधिकार समानरूप से स्त्री और पुरुष को है । अतः महावीर स्वामी की संघव्यवस्था अद्भुत थी। आपने प्रारम्भ से ही चार संघ बनाये थेः--( १ ) मुनि ( साधु ) ( २ ) आर्यिका ( साध्वी ) ( ३ ) श्रावक और ( ४ ) श्राविका। चारों संघों का स्वतंत्र और दृढ़ संगठन था। उनके नेता भी भिन्न-भिन्न थे । इसी संघ-व्यवस्थाने आज भी जैनधर्म को भारत में जीता जागता रखा है। जहाँ प्रायः एक ही समय फलने-फूलनेवाला और दूरस्थ संसार में विस्तृतरूप से फैलनेवाला बौद्धधर्म भारत से प्रायः विलुप्त हो गया। वहाँ यह। इसका मुख्य कारण महावीर स्वामी का प्रारम्भ से ही स्त्रियों और पुरुषों का समान सम्मान और अधिकार की भावना एवं व्यवस्था थी। आपने मुनि और श्रावक के साथ महिलाओं के लिए सिर्फ आर्यिका और श्राविका संघ की स्थापना ही नहीं की, किन्तु गृहस्थ महिलाओं को शास्त्र पढ़ने का पूर्ण अधिकार दिया । आपने जब संघ स्थापित किया तब प्रमुखपद एक महिला चन्दनबाला को दिया। इसी कारण जैनधर्म में स्त्री-पुरुष को सब जगह समान अधिकार प्राप्त है। महावीर स्वामी के समय में जहँ। १४००० मुनि ( श्रमण ) थे वहां ३६००० आर्यिकाएं थीं और इसी प्रकार १,६९००० श्रावकों की तुलना में ३.१८००० श्राविकाएँ थीं । संसार के किसी धर्म के पुरुष साधु-सन्तों की तुलना में स्त्री साध्वी-संतनियों की संख्या कभी बराबर भी नहीं हुई, अधिक होना तो दूर की बात है। जैन ग्रन्थों में वर्णित सुभद्रा की कथा से स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि महावीर स्वामी के धर्म विषयक अधिकार स्त्रियों को पुरुषों के समान ही देने के परिणामस्वरूप सुभद्रा विवाहिता (४२)
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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