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________________ ३२२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ दर्शन और होने से अहिंसा दीपक के समान है । तथा आपत्तियों से प्राणियों की रक्षा करनेवाली होने से अहिंसा त्राण एवं शरणरूप है। श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र के प्रथम संवर द्वार में इस अहिंसा भगवती के ६० नाम कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं (१) निवाण (निर्वाण)-मोक्ष का कारण होने से अहिंसा 'निर्वाण' कही जाती है। (२) निर्वई (निवृत्ति-निवृत्ति)-मन की स्वस्थता (निश्चिन्तता)। अथवा दुःखों की निवृत्ति ( त्याग )। (३) समाधि-चित्त की एकाग्रता । ( ४ ) शक्ति-मोक्षगमन की शक्ति देनेवाली । अथवा शान्ति देनेवाली । (५) कित्ती-यश, कीर्ति देनेवाली । (६) कंती ( कान्ति ) तेज, प्रताप एवं सौन्दर्य और शोभा को देनेवाली । (७) रति-आनन्ददायिनी । (८) श्रुतान-श्रुत ( ज्ञान ) ही जिसका अङ्ग है ऐसी । (९) विरति-पाप से निवृत्त करानेवाली। (१० ) तृप्ति-सन्तोष देनेवाली। (११) दया-सब प्राणियों की रक्षारूप होने से अहिंसा दया ( अनुकम्पा ) है। शास्त्रकारोंने दया की बहुत महिमा बतलाई है और कहा है। सबजग्गजीवरक्खणदयट्ठयाए, पावयणं भगवया सुकहियं । अर्थात्-सम्पूर्ण जगत् के जीवों की रक्षारूप दया के लिए ही भगवान्ने प्रवचन ( सूत्र ) फरमाये हैं। (१२) विमुक्ति-संसार के सब बन्धनों से मुक्त करानेवाली । (१३) क्षान्ति-क्रोध का निग्रह करानेवाली। (१४) सम्यक्त्वाराधना-समकित की आराधना करानेवाली । (१५) महत्ती-सब धर्मों का अनुष्ठानरूप होने से अहिंसा ' महत्ती' कहलाती है। जैसा कि कहा है-- एकं चिय एत्थ वयं निद्दिढ़ जिणवरेहिं सोहिं । पाणाइवायविरमणमवसेसा तस्स रक्खट्ठा ॥ अर्थात्-वीतरागदेवने प्राणातिपात-विरमण ( अहिंसा ) रूप एक ही व्रत मुख्य बतलाया है । शेष व्रत तो उसकी रक्षा के लिए ही बतलाए गये हैं। (१६) बोधि-सर्वज्ञप्ररूपित धर्म की प्राप्ति करानेवाली होने से बोधिरूप है अर्थात्
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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