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________________ अहिंसा-भगवती घेवरचन्द बाँठिया 'वीरपुत्र ' न्याय तीर्थ, सि० शास्त्री, बीकानेर शास्त्रकारोंने अहिंसा को भगवती' कह कर पुकारा है। हिंसा से विपरीत 'अहिंसा' कहलाती है । हिंसा का लक्षण करते हुए कहा गया है प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा अर्थात्-मन, वचन, कायारूप तीन योगों से प्राणियों के दस प्राणों में से किसी भी प्राण का विनाश करना हिंसा है । जैसा कि कहा है पश्चेन्द्रियाणि त्रिविधं बलञ्च, उच्छ्वासनिःश्वासमथान्यदायुः। प्राणाः दशैते भगवद्भिरुक्तास्तेषां वियोजीकरणं तु हिंसा ।। अर्थात्-पांच इन्द्रियां, तीन बल (मनोवलप्राण, वचनबलप्राण, कायबलप्राण ) उच्छ्रासनिश्वास और आयु ये दस प्राण हैं। प्राणी से इन प्राणों का वियोग कर देना हिंसा है, इसके विपरीत अहिंसा है । उसका लक्षण इस प्रकार है अप्रमत्ततया शुभयोगपूर्वकं प्राणाऽव्यपरोपणमहिंसा ___ अर्थात्-अप्रमत्तता ( सावधानता ) से शुभयोगपूर्वक प्राणियों के प्राणों को किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचाना एवं कष्ट में पड़े हुए प्राणी का कष्ट मिटा कर उसकी रक्षा करना अहिंसा कहलाती है। समुद्र के अगाध जल में डूबते हुए और हिंसक जल जन्तुओं से भयभीत बने हुए एवं महान् तरङ्गों से इधर-उधर उछलते हुए प्राणियों के लिए जिस तरह द्वीप आधार होता है, उसी प्रकार संसाररूपी समुद्र में डूबते हुए, सैकड़ों दुःखों से पीड़ित, इष्टवियोग, अनिष्टसंयोगरूप तरङ्गों से प्रान्तचित एवं पीड़ित प्राणियों के लिए अहिंसा द्वीप के समान आधारभूत होती है। अथवा जिस तरह अन्धकार में पड़े हुए प्राणियों को दीपक अन्धकार का नाश कर इष्ट पदार्थ को ग्रहण कराने आदि प्रवृत्ति करवाने में कारणभूत होता है, उसी प्रकार ज्ञानावरणीयादि अन्धकार को नष्ट कर विशुद्धबुद्धि और प्रभा को प्रदान कर हेय पदार्थों के तिरस्कार (अग्रहण) और उपादेय पदार्थों के स्वीकार (ग्रहण ) रूप प्रवृत्ति कराने में कारण (४०)
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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