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________________ ३०२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रय दर्शन और हिंसामयी यज्ञप्रथा का आरम्भ त्रेतायुगमें इस तरह भारत की सभी पौराणिक अनुश्रुतियों से विदित है कि आदिकाल से भारत का मौलिक धर्म अहिंसा, तप, त्याग और संयम रहा है । होम-हवन आदि याज्ञिक पशुबलि, नरमेध, अश्वमेध आदि हिंसक विधान सब पीछे की प्रथाएं हैं, जो त्रेतायुग में बाहर से आकर भारत के जीवन में दाखिल हुई हैं और द्वापर के आरम्भ में यहां की अहिंसामयी अध्यात्म-संस्कृति के संपर्क से सदा के लिए विलुप्त हो गई। (१) इस विषय में मनुस्मृतिकार का मत है तपः परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते । द्वापरे यज्ञमेवाहु-निमेकं कलौ युगे ॥ मनु० १, ८६ अर्थात् सतयुग का धर्म तप है । त्रेतायुग का धर्म ज्ञान है । द्वापर का धर्म यज्ञ है । और कलियुग में अकेला दान ही धर्म है ॥ (२) विष्णुपुराण ६. २, १७ में कहा है ध्यायन् कृते यजन् यत्रेतायां द्वापरेऽर्चयन् । यदाप्नोति तदाप्नोति कलौ संकीर्त्य केशवम् ।। अर्थात् सतयुग में ध्यान से, त्रेता में यज्ञानुष्ठान से और द्वापर में पूजा-अर्चना से मनुष्य जो कुछ प्राप्त कर लेता है वह कलियुग में श्रीकेशव का नामसंकीर्तन करने से ही पा लेता है। (३) बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र ३. १४१-१४७ में भी कहा गया है कृतयुग में ज्ञान, त्रेतायुग में कर्म, (याज्ञिक कर्म) द्वापर में तान्त्रिककर्म, तिष्य (कलियुग) के प्रथम पाद में ज्ञान और कर्म अर्थात् श्रमण और याज्ञिक संस्कृतियां, पिछले पाद में विभिन्न धर्म, वर्ण तथा वेशवाले मनुष्य होते हैं। (४) महाभारत शान्तिपर्व अ. २३१, २१-२६. अ. २३८, १०१. अ. २४४, १४ में कहा है-सतयुग में यज्ञ करने की आवश्यकता न थी। त्रेता में यज्ञ का विधान हुआ । द्वापर में उसका नाश होने लगा और कलियुग में उसका नामनिशान भी न रहेगा। (५) इसी प्रकार मुण्डक उपनिषत् में कहा है(क) तदेतत्सत्यं मन्त्रेषु कर्माणि कवयो यान्यपश्यंतानि त्रेतायां बहुधा संततानि । तान्याचरत नियतं सत्यकामा एष वः पन्थाः सुकृतस्य लोके ॥ १. २. १ (ख) प्लवा घेते अदृढा यज्ञरूपा अष्टादशोक्तमवरं येषु कर्म । एतच्छ्रेयो येऽभिनन्दन्ति मूढा जरामृत्युं पुनरेवापि यन्ति ॥ १. २. ५
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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