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संस्कृति
भारत की अहिंसा संस्कृति । दयादमत्यागसमाधिनिष्ठं नयप्रमाणप्रकृताजसार्थम् । युक्त्यनुशासन ॥६॥
अर्थात् हे महावीर भगवान् ! आपका धर्ममार्ग दया, दम, त्याग (दान) और समाधि ( आत्मध्यानरूप तपश्चर्या) इन चार तत्त्वों में समाया हुआ है। और नयप्रमाण द्वारा वस्तुसार को दर्शानेवाला है।
(५) भगवान् महावीर के समकालीन महात्मा बुद्धने भी दुःखनिरोधार्थ जिस अष्टाहिक धर्ममार्ग का उपदेश दिया है उसमें अहिंसा, मन, वचन, काय का नियन्त्रण और समस्त कायोपभोगों की इच्छाओं व पापकृत्यों के त्याग पर विशेष बल दिया है । धम्मपद, दण्डवग्गो में कहा गया है
सवे तसन्ति दण्डस्स सवे मायन्ति मच्चुनो।
अत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातये ॥ १॥ अर्थात्-सभी दण्ड से डरते हैं। सभी मृत्यु से भयभीत हैं । अतः सभी को अपने जैसा समझ न किसीको मारे न मरवाये ।
(६) महर्षि पतञ्जलिने भारतीय योगियों के गूढ़ अनुभवों तथा उनकी शिक्षा, दीक्षा एवं जीवचर्या के अष्टांगिक योगमार्ग का सार बताते हुए अपने योगदर्शन में कहा है
अहिंसासत्यास्ते यब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ॥ योग० २, ३०
अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्संनिधौ वैरत्यागः ॥ योग० २, ३५ अर्थात् जीवनविकास और लोक-शान्ति-समृद्धि के लिए, अभ्युदय और निःश्रेयस सिद्धि के लिए मनुष्य को उचित है कि वह अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह द्वारा सदा अपने जीवन का नियन्त्रण करे। जिस के प्राणों में अहिंसा की प्रतिष्ठा हो जाती है उसके संपर्क में आनेवाले सभी जन और जन्तु वैर त्याग कर मित्रता का व्यवहार करने लगते हैं।
(७) आदि ब्रह्मा (वृषभ) का धर्म अनुशासन जो पणि लोगों द्वारा प्राचीन काल में मध्य एशियाई देशों में भी फैला था उसकी बहुत सी अनुश्रुतियां बाइबिल की पुरानी धर्मपुस्तक के GENESIS प्रकरण और EXODUS प्रकरण में सुरक्षित हैं। EXODUS के अध्याय २० में गॉड ( God ) ने मनुष्यों के लिए जिन १० धर्मों का आदेश दिया है उनमें अहिंसा, अचौर्य, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का भी आदेश शामिल है।
1. 13. Thou shalt not kill. 14. Thow shalt not commit Adultery. 15. Thou shalt not steal. 16. Thou shalt not bear false witness against thy neighbour. 17. Thou shalt not covet.