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________________ संस्कृति विश्व के विचार-प्रांगण में जैन तत्त्वज्ञान की गंभीरता। २५३ वैज्ञानिक सैकड़ों और हजारों आलोक वर्ष नामक दूरी-परिमाण में और जैन-दर्शनसम्मत राजू के दूरी-परिमाण में कितनी सादृश्यता है ! इसी प्रकार सैकड़ों और हजारों आलोक वर्ष जितनी दूरी पर स्थित जो तारे हैं वे परस्पर में एक-दूसरे की दूरी के लिहाज से करोड़ों और अरबों मील जितने अन्तर वाले हैं और इनका क्षेत्रफल भी करोड़ों और अरबों मील जितना है । इस वैज्ञानिक तथ्य की तुलना जैन-दर्शनसम्मत वैमानिक देवताओं के विमानों की पारस्परिक दूरी और उनके क्षेत्रफल के साथ कीजियेगा तो पता चलता है कि क्षेत्रफल के लिहाज से परस्पर में कितना वर्णनसाम्य है। वैमानिक देवताओं के विमानरूप क्षेत्र परस्पर की स्थिति की दृष्टि से एक दूसरे से अरबों मील दूर होने पर भी मूल देवता याने मुख्य इन्द्र के विमान में आवश्यकता के समय में 'घंटा' की तुमुल घोषणा याने ध्वनि-विशेष होने पर शेष संबंधित लाखों मीलों की दूरी पर स्थित लाखों विमानों में उसी समय बिना किसी भी दृश्यमान आधार के और किसी भी पदार्थ द्वारा संबंध रहित होने पर भी 'वायर-लेस पद्धति से ' तुमुल घोषणा और घंटा-निनाद शुरु हो जाता है । यह कथन ' रेडियो और टेलीविजन एवं संपर्क-साधक अन्य विद्यत-शक्ति ' का ही पूर्व प्रकरण नहीं तो और क्या है ! ऐसा यह ' रेडियो-संबंधी' शक्ति-सिद्धान्त जैन-दर्शन हजारों वर्ष पहिले ही व्यक्त कर चुका है। शब्द रूपी हैं, पौगालिक हैं और क्षणमात्र में ही सारे लोक में फैल जाने की शक्ति रखते हैं-ऐसा विज्ञान जैन-दर्शनने हजारों वर्ष पहले ही चिंतन और मनन द्वारा बतला दिया था। इस सिद्धान्त को जैन-दर्शन के सिवाय आज दिन तक विश्व का कोई भी दर्शन मानने को तैयार नहीं हुआ था । वही जैन-दर्शन द्वारा प्रदर्शित सिद्धान्त अब · रेडियो-युग' में एक स्वयंसिद्ध और निर्विवाद विषय बन सका है। भारतीय अन्य दर्शन 'शब्द' को अरूपी और आकाश का गुण मानते आये हैं; किन्तु जैन दर्शन शब्द को रूपी, पुद्गलात्मक, पकड़ में आने योग्य और पुद्गलों की अन्य अवस्थाओं में रूपान्तर होने योग्य मानता आया है । पुद्गल के हर सूक्ष्म से सूक्ष्म परमाणु में और अणु-अणु में महान् सजनात्मक शक्ति और संयोग-अनुसार अति भयंकर विनाशक शक्ति स्वभावतः रही हुई है-ऐसा सिद्धान्त भी जैन-दर्शन हजारों वर्ष पहले ही समझा चुका है। वही सिद्धान्त अब ‘एटमबम, कीटाणुबम और हाइड्रोजन एलेक्ट्रिक बम ' बनने पर विश्वसनीय समझा जाने लगा है। ___ आज का विज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाणों के आधार पर अनन्त ताराओं की कल्पनातीत विस्तीर्ण वलयाकारता का, अनुमानातीत विपुल क्षेत्रफल का और अनन्त दूरी का जैसा वर्णन
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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