SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ दर्शन और स्थान' बनाम आध्यात्मिक क्रमिक विकास-शील श्रेणियाँ भी निर्धारित की हैं जिनकी कुल संख्या चौदह हैं । यह अध्ययन-योग्य, चिंतन-योग्य और मनन-योग्य एक सुन्दर, सात्विक और विशिष्ट विचार-धारा है-जो कि मनोवैज्ञानिक पद्धति के आधार पर आंतरिक-वृत्तियों का उपादेय और हितावह चित्रण है। इस विचार-धारा का वैदिक-दर्शन में भूमिकाओं के नाम से और बौद्ध-दर्शन में अवस्थाओं के नाम से उल्लेख और वर्णन पाया जाता है; किन्तु जैन-साहित्य में इसका जैसा सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन सुसंयम और सुव्यवस्थित पद्धति से पाया जाता है उसका अपना एक विशेष स्थान है और वह विद्वानों के लिये और विश्व-साहित्य के लिये अध्ययन एवं अनुसंधान का विषय है। भौतिक विज्ञान और जैन-खगोल आदि____ जैन-साहित्य में खगोल-विषय के संबंध में भी इस ढंग का वर्णन पाया जाता है कि जो आज के वैज्ञानिक खगोलज्ञान के साथ वर्णन का भेद; भाषा का भेद; और रूपक का भेद होने पर भी अर्थान्तर से तथा प्रकारान्तर से बहुत कुछ सदृश ही प्रतीत होता है। आज के भौतिक-विज्ञानने सिद्ध करके बतलाया है कि प्रकाश की चाल प्रत्येक सेकिंड़ में एक लाख छींयासी हजार (१,८६०००) मील की है । इस हिसाब से (२६५४ दिन ४ २४ घंटा ४६० मिनिट x ६० सेकिंड x १,८६०००) मील जितनी महती और विस्तृत दूरी के माप के लिहाज से ' एक आलोक वर्ष ' ऐसी संज्ञा वैज्ञानिकोंने दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आकाश में ऐसे-ऐसे तारे हैं, जिनका प्रकाश यदि यहाँ तक आ सके तो उस प्रकाश को यहाँ तक आने में सैकड़ों 'आलोक-वर्ष ' तक का समय लग सकता है । ऐसे ताराओं की संख्या लौकिक भाषां में अरबों-खरबों तक की खगोल-विज्ञान बतलाता है। आकाश-गङ्गा बनाम निहारिका नाम से ताराओं की जो अति सूक्ष्म झांकी एक लाइन के रूप से आकाश में रात्रि के आठ बजे के बाद से दिखाई देती है उन ताराओं की दूरी यहाँ से सैकड़ों ' आलोक-वर्ष ' जितनी वैमानिक विद्वान् कहा करते हैं। ___ इस विषय में जैन-दर्शन का कथन है कि ( ३८११२९७० मन x १००० ) इतने मनों के वजन का एक गोला पूरी शक्ति से फेंका जाने पर छः महिने, छः दिन, छः पहर, छ घड़ी और छः पल में जितनी दूरी वह गोला पार करे, उतनी दूरी का माप 'एक राजू कहलाता है । इस प्रकार यह संपूर्ण ब्रह्मांड याने आविल लोक केवल चौदह राजू जितनी लंबाई का है और चौड़ाई में केवल सात राजू जितना है। अब विचार कीजियेगा कि
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy