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________________ संस्कृति कर्मबंधन और मोक्ष | २३५ व मोह के वशीभूत होकर वारंवार जन्म-मरण के कष्टों को सहन करता रहता है । ऐसे कर्मजन्य विपाक से परिमुक्त होकर आत्मा के स्वकीय नैसर्गिक गुणों का आस्वादन करना प्रत्येक भव्यजनों का कर्त्तव्य है । हमें दुःख का कारण कर्म को समझना प्रथम कर्तव्य है; क्योंकि कारण के बिना कार्य नहीं होता । अतः दुःख के कारण कर्म के स्वरूप, कर्म की मूल व उत्तर प्रकृति तथा बंध, उदय, उदीरणा व सचा इन्हें भलिभाँति समझना चाहिये । से छुटकारा पाने के लिए सुख के कारण तत्त्वश्रद्धारूप - सम्यग्दर्शन, तच्चप्रकाशक - सम्यग्ज्ञान व तत्त्व आचरण - सम्यक् चारित्र के स्वरूप को समझ कर रत्नत्रयी धारण करना चाहिये । जैसे मलिन वस्त्र विशेष प्रकार से जल साबून द्वारा शुद्ध किया जाता है, ठीक वैसे ही यह आत्मा भी रत्नत्रयी द्वारा कर्मरज के मल से परिमुक्त होकर पूर्ण पवित्र सिद्धात्मा तुझ्य बन जाता है ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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