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________________ २०० श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-थ पर्शन और क्रिया बिना द्रव्य नहीं और द्रव्य बिना क्रिया नहीं। इस मत को नैगमान्तर्गत किया गया है । नैगमनय द्रव्यार्थिक नय है। (६) इस अर में द्रव्य और क्रिया के तादात्म्य का निरास वैशेषिक दृष्टि से करके द्रव्य और क्रिया के भेद को सिद्ध किया गया है। इतना ही नहीं किन्तु गुण, सत्तासामान्य, समवाय आदि वैशेषिक संमत पदार्थों का निरूपण भी भेद का प्राधान्य मान कर किया गया है । आचार्यने इस दृष्टि को भी नैगमान्तर्गत करके द्रव्यार्थिक नय ही माना है। प्रथम अर से लेकर इस छटे अर तक द्रव्यार्थिक नयों की विचारणा है । अब आगे के नय पर्यायार्थिक दृष्टि से हैं। (७) वैशेषिक प्रक्रिया का खण्डन ऋजुसूत्र नय का आश्रय लेकर किया गया है। उसमें वैशेषिक संमत सत्तासंबंध और समवाय का विस्तार से निरसन है और अन्त में अपोहवाद की स्थापना है । यह अपोहवाद बौद्धों का है। (८) अपोहवाद में दोष दिखा कर वैयाकरण भर्तृहरि का शब्दाद्वैत स्थापित किया गया है । जैन परिभाषा के अनुसार यह चार निक्षेपों में नामनिक्षेप है। जिस के अनुसार वस्तु नाममय है, तदतिरिक्त उसका कुछ भी स्वरूप नहीं । __इस शब्दाद्वैत के विरुद्ध ज्ञान पक्ष को रखा है । और कहा गया है कि प्रवृत्ति और निवृत्ति ज्ञान के बिना असंभव है । शब्द तो ज्ञान का साधन मात्र है । अतएव शब्द नहीं किन्तु ज्ञान प्रधान है । वहां भर्तृहरि और उनके गुरु वसुरात का भी खण्डन है । __ ज्ञानवाद के विरुद्ध स्थापना निक्षेप का निर्विषयक ज्ञान होता नहीं-इस युक्ति से उत्थान है। शाब्द बोध जो होगा उसका विषय क्या माना जाय ! जाति या अपोह ! प्रस्तुत में स्थापना निक्षेप के द्वारा अपोहवाद का खण्डन करके जाति की स्थापना की गई है। ... (९) जातिवाद के विरुद्ध विशेषवाद और विशेषवाद के विरुद्ध जातिवाद का उत्थान है; अत एव वस्तु सामान्यैकान्त या विशेषकान्तरूप है ऐसा नहीं कहा जा सकता । वह अवक्तव्य है । इसके समर्थन में निम्न आगम वाक्य उद्धृत किया है-" इमाणं रयणप्पमा पुवीढ़ आता नो आता : गोयमा! अप्पणो आदिढे आता, परस्स आदिढे वो आता तदुभयस्स आदिढे अवत्तवं ॥" (१०) इस अवक्तव्यवाद के विपक्ष में समभिरूढ नय का आश्रय लेकर बौद्भदृष्टि से कहा गया कि द्रव्योत्पत्ति गुणरूप है अन्य कुछ नहीं। मिलिन्द प्रश्न की परिभाषा में कहा जाय तो स्वतंत्र रथ कुछ नहीं रथांगों का ही अस्तित्व है। रथांग ही रथ है अर्थात् द्रव्य जैसी कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं गुण ही गुण हैं । इसी वस्तु का समर्थन सेना और बन के दृष्टान्तों द्वारा भी किया गया है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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