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________________ १९६ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ दर्शन और उत्थान की अनिवार्यता के कारणों की खोज करना, मन्तव्यों के पारस्परिक विरोध और बलाबल का विचार करना-यह सब कार्य उन मन्तव्यों के समन्वय करनेवाले के लिए अनिवार्य हो जाते हैं। अन्यथा समन्वय की कोई भूमिका ही नहीं बन सकती। नयचक्र में आचार्य मल्लवादीने यह सब अनिवार्य कार्य करके अपने अनुपम दार्शनिक पाण्डित्य का तो परिचय दिया ही है और साथ में भारतीय तत्वचिन्तन के इतिहास की अपूर्व सामग्री का भंडार भी आगामी पीढ़ी के लिए छोड़ने का श्रेय भी लिया है । इस दृष्टि से देखा जाय तो भारतीय समग्र दार्शनिक वाङ्मय में नयचक्र का स्थान महत्त्वपूर्ण मानना होगा। नयचक्र की रचना की कथा भारतीय साहित्य में सूत्रयुग के बाद भाष्य का युग है । सूत्रों का युग जब समाप्त हुआ तब सूत्रों के भाष्य लिखे जाने लगे। पातञ्जलमहाभाष्य, न्यायमाष्य, शोबरभाष्य, प्रशस्तपादभाष्य, अभिधर्मकोषभाष्य, योगसूत्र का व्यासभाष्य, तत्त्वार्थाधिगमभाष्य, विशेषावश्यकभाष्य, शांकरभाष्य आदि । प्रथम भाष्यकार कौन है यह निश्चयपूर्वक कहना कठिन है। इस दीर्घकालीन भाष्ययुग की रचना नयचक्र है । परम्परा के अनुसार नयचक्र के कर्ता आचार्य मल्लवादी सौराष्ट्र के वलभिपुर के निवासी थे। उनकी माता का नाम दुर्लभदेवी था। उनका गृहस्थ अवस्था का नाम ' मल्लु' था, किन्तु वाद में कुशलता प्राप्त करने के कारण मल्लवादी रूप से विख्यात हुए। उनके दीक्षा-गुरु का नाम जिनानन्द था जो संसार पक्ष में उनके मातुल होते थे । भृगुकच्छ में गुरु का पराभव बुद्धानन्द नामक बौद्ध विद्वान् ने किया था; अत एव वे वलभि आगए । जब 'मल्लवादी' को. यह पता लगा कि उनके गुरु का वाद में पराजय हुआ है, तब उन्होंने स्वयं भृगुकच्छ जा कर वाद किया और बुद्धानन्द को पराजित किया । इस कथा में संभवतः सभी नाम कल्पित हैं । वस्तुतः आचार्य मल्लवादी का मूल नयचक्र जिस प्रकार कालग्रस्त हो गया उसी प्रकार उनके जीवन की सामग्री भी कालग्रस्त हो गई है। बुद्धानन्द और जिनानन्द ये नाम समान हैं और सिर्फ आराध्यदेवता के अनुसार कल्पित किए गए हों ऐसा संभव है । मल्लवादी का पूर्वावस्था का नाम 'मल्ल' था-यह भी कल्पना ही लगता है । वस्तुतः इन आचार्य का नाम कुछ और ही होगा और ' मल्लवादी ' यह उपनाम. ही होगा। जो हो, परंपरा में उन आचार्य के विषय में जो एक गाथा चली आती थी उसी गाथा को लेकर उनके जीवन की घटनाओं का वर्णन किया गया हो ऐसा संभव है। नयचक्र की रचना के विषय में जो पौराणिक कथा दी गई है उस से भी इस कल्पना का समर्थन होता है। १ कथा के लिए देखो, प्रभावक चरितका-मल्लवादी प्रबन्ध ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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