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________________ श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक -ग्रन्थ श्री राजेन्द्र पुष्पांक दर्शन और संस्कृति हिन्दी आचार्य मल्लवादी का नयचक्र श्री दलसुख मालवणिया आचार्य अकलंके और विद्यानन्द के ग्रन्थों के अभ्यास के समय नयचक्र नामक ग्रन्थ के उल्लेख देखे, किन्तु उसका दर्शन नहीं हुआ । बनारस में आचार्य श्रीहीराचंद्रजी की कृपा से नयचक्रटीका की हस्तलिखित प्रति देखने को मिली। किन्तु उसमें नयचक्र मूल नहीं मिला । पता चला कि यही हाल सभी पोथिओं का है। विजयलब्धिसूरि ग्रन्थमाला में नयचक्रटीका के आधार पर नयचक्र का उद्धार करके अंशतः उसे सटीक छापा गया है। गायकवाड़ सिरीज में भी नयचक्रटीका अंशतः छापी गई है। मुनि श्री पुण्यविजयजी की प्रेरणा से मुनि श्री जम्बूविजयजी नयचक्र का उद्धार करने के लिए वर्षों से प्रयत्नशील हैं। उन्होंने उसीके लिए तिब्बती भाषा भी सीखी और नयचक्र की टीका की अनेक पोथिओं के आधार पर टीका को शुद्ध करने का तथा उसके आधार पर नयचक्र मूल का उद्धार करने का प्रयत्न किया है । उनके उस प्रयत्न का सुफल विद्वानों को शीघ्र ही प्राप्त होगा । कृपा करके उन्होंने अपने संस्करण के मुद्रित पचास फोर्म पृ० ४०० देखने के लिए मुझे मेजे हैं, और कुछ ही १ न्यायविनिश्चय का० ४७७, प्रमाणसंग्रह का० ७७२ श्लोकवार्तिक १.३३. १०२ पृ० २७६ ॥ ( ३० )
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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