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श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय गुर्वावली ।
सम्पन्न हुई और आपने स्तुतिप्रभाकर, जैन जन मांसभक्षणनिषेध, प्रश्नामृत प्रश्नोत्तर तरंग, चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धार और जैन विधवा पुनर्लग्न निषेधादि अनेक ग्रन्थ बनाए । संक्त् १९७७ भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा सोमवार के दिन रात्री को ८ बजे बागरा ( मारवाड़ ) में आपका स्वर्गवास हुवा | स्वर्गवास महोत्सव में बागरा के श्रीसंघने सात हजार रुपयों का खर्च किया था ।
७००-श्रीविजय भूपेन्द्रसूरिजी - - आपका जन्म वि. सं. १९४४ वै. शु० ३ को भोपाल में फूलमाली भगवानजी की धर्मपत्नी सरस्वती से हुआ था। जन्म-नाम देवी चन्द्र था। संवत् १९५२ में आपने वैशाख शु० ३ शनिवार को आलिराजपुर में जगत्पूज्य श्रीमद्विजयर | जेन्द्रसूरीश्वरजी म. के करकमलों से दीक्षा ग्रहण की और आपका नाम श्री दीपविजयजी रक्खा गया । आप प्रकृति के सरल और शान्तिप्रिय थे । संवत् १९७३ में विद्वन्मंडलने आपको 'विद्याभूषण' का पद दिया | श्रीमद्धनचन्द्रसूरिजी के पट्ट पर श्री जैनचतुर्विध श्री संघने जावरा म. भा. ) में सं. १९८० ज्येष्ठ शु० ८ शुक्रवार को महामहोत्सवपूर्वक आपको विराजित कर श्री भूपेन्द्रसूरिजी आपका नाम घोषित किया। इसी उत्सव में मुनि श्री यतीन्द्रविजयजी को उनकी अनिच्छा होते हुये भी श्री संघने उपाध्याय पद दिया । आपका विहारक्षेत्र मालवा, मेवाड़, मारवाड़, गुजरात और काठियावाड़ रहा है । आपके हस्तदीक्षित शिष्य दानविजयजी, कल्याण विजयजी आदि ५ हैं । वि. सं. १९९० अहमदावाद में हुए अखिल भारतवर्षीय श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन में आप भी पधारे थे, वहाँ नव वृद्ध पुरुषों ( समाज के अग्रगण्य ) की जो जनरल समिति नियत की गई थी, उसमें आपकी भी चुनौती हुई थी ।
विश्वविख्यात् श्रीअभिधान राजेन्द्र महाकोष का संशोधन-सम्पादनकार्य आपने और वर्तमानाचार्य दोनोंने साथ रह कर सम्पन्न किया । इस प्रकार शासनप्रभावना करते हुए आपने चन्द्रराजचरित्र, सूक्तमुक्तावली, दृष्टान्तशतक संस्कृत - टीका आदि अनेक ग्रन्थ बनाए । विक्रम संवत् १९९३ माघ शु० ७ को प्रातः ४९ वर्ष की अल्पायु में ही आहोर ( राजस्थान ) में आप स्वर्गवासी हो गये ।
७१ - वर्तमानाचार्य श्रीविजय यतीन्द्रसूरिजी - आपका जन्म विक्रम संवत् १९४० कार्तिक शुक्ला द्वितीया रविवार को घवलपुर (बुंदेलखंड) में दिगम्बर जैनधर्मावलम्बी राय साहब सेठ श्रीब्रजलालजी की गृहलक्ष्मी चम्पाबाई से हुवा था । जन्म-नाम रामरत्न था । आपके बड़े . भाई दुल्हिचंद, छोटे भाई किशोरीलाल और बड़ी भगिनी गंगाकुमारी और छोटी रमा - कुमारी थी। महेंदपुर में गुरुदेव श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिजी म. के दर्शन हुये और उनके ही उपदेशामृत से प्रतिबुद्ध हो आपने संसार को निःसार समझ कर विक्रम संवत् १९५४ आषाढ़