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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ की रात्रि को आठ बजे राजगढ़ (मालवा ) में अर्हम्-अर्हम् का उच्चारण करते हुए आपका स्वर्गवास हुवा । आपके स्वर्गवास के समय धार और झाबुवा के नरेश भी अन्तिम दर्शन को आए थे । स्वर्गवासोत्सव में राजगढ के जैन त्रिस्तुतिकसंघने तथा आगन्तुक संघने नव हजार की निछरावल की थी । पौष शुक्ला ७ शुक्रवार को राजगढ से एक मील दूर आपके ही दिव्योपदेश से संस्थापित जैन श्वे. तीर्थ श्रीमोहनखेड़ा में जहाँ आपके पार्थिव शरीर का अग्निसंस्कार किया गया था, वहीं पर एक अति रमणीय संगमरमर का समाधि-मन्दिर निर्माण कराने का निश्चय किया गया, जिसमें आपकी रम्य मनोहर प्रतिकृति (प्रतिमा) आज विराजित है । अन्त्येष्ठि-क्रिया के दिन ही प्रतिवर्ष आपकी जयंती मनाई जाती है।
६९-श्रीविजयधनचन्द्रमूरिजी-आपका जन्म वि. संवत् १८९६ चैत्र शु०४ के दिन फूलेरा जंक्शन से ३१ मील दूर पश्चिम-दक्षिण में राजपूताने की प्रसिद्ध रियासत 'किशनगढ' में ओशवंशीय कंकु चोपड़ा गौत्रीय शा. ऋद्धिकरणजी की धर्मपत्नी अचलादेवी से हुवा था । आपका जन्म नाम 'धनराज' था। बड़े भाई मोहनलाल व छोटी बहिन रूपीनाम की थी। संवत् १९१७ वैशाख शुक्ला ३ गुरुवार के दिन धानेरा ( उत्तर गुजरात ) में देवसूरगच्छीय-यति लक्ष्मीविजयजी के पास आपने यतिदीक्षा ली और 'धनविजयजी' नाम रक्खा गया। वि. सं. १९२५ आषाढ कृ० १० बुधवार के दिन जावरा ( मध्य भारत ) में जैनाचार्यवर्य प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के पास आपने साधु दीक्षोपसंपद् स्वीकार की और उन्हीं के करकमलों से खाचरोद (मालवा) में आपको संवत् १९२५ मार्गशीर्ष शुक्ला ५ के दिन उपाध्याय पद मिला । पश्चात् आपने मालवा, मारवाड़, मेवाड़, और गुजरात में विचरण कर अनेक प्राणियों को धर्मबोध दिया। संवत् १९६५ ज्येष्ठ शुक्ला ११ के दिन जावरा (मालवा) में आपको श्रीजैनचतुर्विध संघने श्रीराजेन्द्रसूरिजी के पट्ट पर विराजित कर आचार्यपद दिया। जिसके महोत्सव में जावरा श्रीसंघने १५ सहस्र रुपया खर्च किया। संवत् १९६६ में पौष शुक्ला नवमी के दिन श्रीविजयराजेन्द्रसूरिजी महाराज के हस्तदीक्षित शिष्य पं. श्रीमोहनविजयजी को आपने राणापुर (मालवा ) में उपाध्याय पद देकर स्वसंप्रदायी साधु-साध्वीयों को उनकी ही आज्ञा से विचरने एवं चातुर्मासादि करने की आज्ञा प्रदान की। आपके गुलाबविजयजी, हंसविजयजी आदि ४ हस्त-दीक्षित शिष्य थे। आपके हाथ से प्रतिष्ठाञ्जनशलाकाएँ अनेक
१ आपका जन्म सं० १९२२ भाद्र कृ. २ गुरुवार को जालोर-मंडलान्तर्गत सांबूजा (मारवाड़) में ब्राह्मग वृद्धिचंद की धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवी से हुवा था । संवत् १९३३ माघ शुक्ला २ को श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिजी से जावरा ( मध्यभारत) में दीक्षा ग्रहण की। सं० १९५१ फाल्गुन शुक्ला २ को शिवगंज में आपको पन्यास पद मिला । आप लोकप्रिय, शान्तस्वभावी, धर्मोपदेष्टा एवं पूर्ण गुरुभक्त ये । सं० १९७७ पौ. शु. ४ को कुक्षी (निमाड़) में आपका स्वर्गवास हुवा ।