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________________ श्रीसौधर्मवृहत्तपागच्छीय गुर्वावली । १४९ के यति प्रमोदरुचिजी और धानेरा (पालनपुर ) के यति लक्ष्मीविजयजी के शिष्य धनविजयजी ने पंचमहाव्रत रूप दीक्षोपसंपद् ग्रहण की । सं. १९२७ के कुकसी के चातुर्मास में श्रीसंघ के आग्रह से आपने व्याख्यान में ४५ आगम सार्थ बांचे थे। क्रियोद्धार के पश्चात् आपके करकमलों से २२ अंजनशलाका और अनेक प्रतिष्ठाएँ सम्पन्न हुई थीं। आपने चिरोला जैसे महाभयंकर २५० वर्ष पूराने जाति कलह को भी मिटाया था। आपने लोकोपकारार्थ प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी और गुजराती भाषा में श्रीअभिधान राजेन्द्रकोष, पाइयसदम्बुहिकोष, प्राकृतव्याकरण व्याकृति टीका ( पद्य ), श्रीकल्पसूत्रार्थ-प्रबोधिनी टीका, श्रीकल्याणमन्दिरस्तोत्र प्रक्रिया टीका, सकलैश्वर्य स्तोत्र, शब्दकौमुदी (पद्य); धातुपाठतरंग, और सिद्धान्तप्रकाश आदि ६१ ग्रन्थों की रचना की। आपके जीवन के अनेक कार्य हैं, जिनका विशेष परिचय · श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर जीवनप्रभा ' से जानना चाहिये । आपके हस्तदीक्षित श्रीधनचन्द्रसूरिजी, प्रमोदरुचिजी और मोहनविजयजी आदि १९ शिष्य और श्री. अमरश्रीजी, विद्याश्रीजी, प्रेमश्रीजी, मानश्रीजी आदि साध्वियाँ हैं। ___ झाबुवा और चिरोला-नरेश तथा सियाणा (राजस्थान ) के ठाकुर आपके पूर्ण भक्त थे और आपके फोटू के नितप्रति दर्शन-पूजन करते थे । संवत् १९६३ पौष शु० ६ गुरुवार १-आपका जन्म मेवाड़देशीय भींडरगांम में संवत् १८९६ कार्तिक शु० ५ के दिन ब्राह्मण शिवदत्त की पत्नी मेनावती से हुवा। छोटे भाई रघुदत्त और छोटी बहिन रुक्मणी थी। संवत् १९१३ माघ शुक्ला ५ गुरुवार को आपने पं अमररुचिजी के पास भींडर में ही यतिदीक्षा ली। विक्रम संवत् १९३८ आषाढ कृ. १४ के दिन बांगरोद (मध्यभारत ) मैं आपका स्वर्गवास हुआ । आप संगीतशास्त्र के श्रेष्ठ विद्वान् थे। आपके रचित सज्झाय-स्तुति-चैत्यवंदन “प्रभुस्तवनसुधाकर" नामक पुस्तक में मुद्रित हो चुके हैं। २ मालवे में चिरोला नामका एक गाँव है; जो रूनीझा रेल्वे स्टेशन से ६ मील पूर्व में है। विक्रम संवत् १७२० के लगभग यहाँ के एक बीसा ओशवाल गृहस्थने पारिवारिक कलह के कारण अपनी लड़की का सगपन रतलाम में और उसकी स्त्रीने सीतामऊ में कर दिया। निर्धारित समय पर दोनों ओर की बरातें आ उपस्थित हई. दोनों ओर के पंच बीच में पड़े। परन्तु सीतामऊवाले लड़की को ब्याह ले गये। इससे अपमानित होकर रतलामवालोंने सर्वानुमत से चिरोला और उसके पक्ष के खरसोद, मकरावन, भैसला, उड़ेसिंगा, सलावद. छोटा बालोदा, खेड़ावद और सीतामऊवालों को जाति से बहिष्कृत कर दिया। यहाँ तक की इन गांवों के कुवों से जल पीना तक बन्द कर दिया और तो क्या ? वहां के अजैनों से भी व्यवहार-विच्छेद है दिया। क्रमशः सारे मालवे में इस की पाबन्दी हो गई। कुछ समय उपरान्त सीतामऊवाले तो दण्ड देकर जातिमें शामिल हो गये, लेकिन शेष गॉव बहिष्कृत ही रहे। बाद में चिरोलादि आठ गाँवों के महाजनोंने रतलामवालों से अनेक बार प्रार्थना की और सारे मालवे भर का संघ भी कई बार मेला हुवा । स्थानकमार्गी साधु श्रीचौथमलजी और रतलामनरेशने भी अनेक प्रयत्न किये, परन्तु सब निष्फल रहे । सौभाग्य वश वि. सं. १९६२ का गुरुदेव का चोमासा खाचरोद में हुआ। उस समय ये लोग आपकी सेवा में आये। आपने अपनी शक्ति से बिना कुछ दण्ड लिये ही सर्वानुमत से इनको जाति में सामिल करवा दिया।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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