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________________ गुरुदेब के जीवन का विहंगावलोकन । के पास आना और १९२० में रतलाम में चौमासा कर पुनः आहोर गुरु-सेवा में आना । सं० १९२१ में धरणेन्द्रसूरि की प्रार्थना से जोधपुर और बीकानेर के नरेशों से सन्मान कराने को रत्नविजयजी का आना | और दोनों नरेशों द्वारा धरणेन्द्रसूरि को सन्मान दिलाना । रत्नविजयजी को धरणेन्द्रसूरि द्वारा दफ्तरी-पद देना।। (१४) सं० १९२१ का चौमासा अजमेर में धरणेन्द्रसूरि के साथ । (१५) सं० १९२२ में मरुधर में पदार्पण और स्वतन्त्र रूप से २१ यतियों के साथ जालोर में चौमासा । मरुधर में भ्रमण और घाणेराव में धरणेन्द्रसूरि के अत्याग्रह से उनके साथ सं० १९२३ में चौमासा । पर्वाधिराज पर्दूषण में इत्र विषय में विवाद । धरणेन्द्रसूरि को हित-शिक्षा देने की प्रतिज्ञा लेना और निज गुरु के पास आहोर में आगमन । १६) सं० १९२४ वैशाख शु० ५ बुधवार को आहोर में श्रीप्रमोदसूरिजी द्वारा श्रीपूज्यपद का मिलना और श्रीपूज्य श्रीविजयराजेन्द्रसूरिजी नामकरण होना। (१७) मरुधर, मेवाड़ में विहार । शंभूगढ़ में फतहसागरजी द्वारा पुनः पाटोत्सव और राणाजी द्वारा श्रीपूज्यजी को छड़ी, चमरादि भेंट मिलना । (.१८) सं० १९२४ का चौमासा जावरा में किया । चौमासे में जावरा नवाब और दीवान के प्रश्रों के उत्तर । श्रीपूज्य धरणेन्द्रसूरि की ओर से भेजे हुए सिद्धकुशल और जय दोनों का जावरा में आना । उनकी आपको और जावरा-संघ को प्रार्थना । आप और से गच्छसुधारे की नव कलमों का पत्र देना। दोनों यतियों के शुभ प्रयास से श्रीज्य धरणेन्द्रसूरि की ओर से कलमों की स्वीकृति होना और उस पत्र पर सं० १९२४ माघ शुक्ला १५ को हस्ताक्षर करना । (१९) सं० १९२५ आषाढ़ शु० १० शनिवार को शैथिल्य-चिह्न तथा परिग्रह का त्याग कर क्रियोद्धार कर के सच्चा साधुत्व ग्रहण करना । (२०) सं० १९२५ का चौमासा खाचरोद में करना । त्रिस्तुति सिद्धान्त को पुनः प्रकट करना । शेष काल में मालव भूमि में विहार । (२१) सं० १९२६ का चौमासा रतलाम में । शेष काल में मालव के पर्वतीय नगर ग्रामों में विहार और सं० १९२७ का कूकसी में चातुर्मास व 'षड्द्रव्यविचार ग्रन्थ' की रचना। व्याख्यान में ४५ आगम सार्थ की वाँचना । अट्ठाई व्याख्यान का भाषान्तर करना । चातुर्मास के पश्चात् दिगम्बर सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी पर्वत की शिखा पर निज आत्मोन्नति करनार्थ छः मास तक घोर तपस्या करना । (२२) सं० १९२८ में राजगढ़ में चौमासा और शेष काल में मालव भूमि में विहार
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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