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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रथ का धनिष्ट सम्बन्ध है यह बात संस्कृत शब्द से ही जानी जाती है। कतिपय नाटकों में स्त्रियों की उक्ति प्राकृत में ही बतलाई गई है। इसका मुख्य कारण यही रहा है कि यह प्राकृत भाषा हमारी स्वाभाविक या मूल भाषा रही है । जैनागम और जैन साहित्य-रचना में प्राकृत का एक उच्चतम स्थान रहा है । आज प्राकृत भाषा का पूरा-पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिये इस टीका का बड़ा भारी महत्त्व रहा है । ' अव्याकरणी नरः पङ्गुः' इस हेतु से ही प्राकृत व्याकरण पर यह टीका रचने का उद्देश्य माना गया है।