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________________ ९६ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक - ग्रंथ तक कि उसका सही हल न हो जाय । मैं तो यही कहूंगा कि एक मुसन्निफ की तकलीक को हल कर देना भी उस से कहीं ज्यादा सवाब है जितना कि एक कसाई की छुरी के नीचे से बकरी को बचाना । क्यों कि बकरी को तो उसकी जान निकलने तक ही तकलीफ का अहसास होता है मगर मुसन्निफ उस वक्स परेशानी व तकलीफ से बेचेन रहता है, जबतक कि उससे वह लफ्ज सही न हो जाय । मौसूफकी ये किताबें उनकी इन मुश्किलात को हल करने में काफी मदद करेंगी। मैं तो यही कहूंगा कि इस लुगत को लिख कर अहिंसा धर्म के समझने में खुल (कमी ) रह गई थी उसे पूरा कर दिया । इनकी इस तस्नीफ से कई भूले-भटके लोग सच्चा रास्ता पा सकेंगे। इन किताबों से रहती दुनियां तक इन का नाम अमर रहेगा और इस से बेइन्तिहा फायदा हासिल करेगी। मैं इन सच्चे रहबर की दिल से कदर करता हूँ और पाक परवरदिगार के हुजूर में दुआगो हूँ कि ऐसे सच्चे रहबर हमेशा नाजिल करे ! आमीन।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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