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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ है। तभी तो तुलसी, सूर, कबीर आदि कवियों की कृतियों से भारतवासी जन-समूह में ईश्वर के प्रति आस्तिक भावना जाग्रत होती हैं । जैन महाकवियों की कृतियों में भी आध्यात्मिक, वैराग्य, त्याग भावनाओं से गुंफित काव्य ही अधिकतर पाये जाते हैं । यहाँ तक देखा गया है कि जब हमारे सामने उनके गीत आते हैं हम उनको गाते-गाते और उनको सुननेवाले भाई भी बोल उठते हैं-' संसार असार है-घरद्वार, पुत्र, मित्र, कुटुम्ब मिथ्या हैं।'
परम पूज्य गुरुदेव राजेन्द्रसूरिजी महाराजने नवपद ओलीदेववंदन, पंचकल्याणक महावीर पूजा, जिनचोवीसी, अघटकुमार चौपाई, स्तवन सज्झाय आदि विविध राग-रागिणियों में भावपूर्ण अच्छे ढंग से रच करके अपना अमूल्य समय प्रभु के गुण-गान में व्यतीत किया है। इन रचनाओं को भावुकजन साज-बाज के साथ गाते हैं और स्वर्गीय सुखानुभव करते हैं । आत्मा की तल्लीनता जब प्रभु के चरणारविंद में होती है, तब कहीं कोई भवबंधन से मुक्त होने का पुण्य अर्जन करता है ।