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________________ श्री अभिधान राजेन्द्र कोश और उसके कर्ता । 'सज्झाय ' ( स्वाध्याय ) शब्द का स्वरूप, स्वाध्यायकाल, स्वाध्याय विधि, स्वाध्याय के गुण व लाभ तथा स्वाध्याय से क्या सिद्धि होती है अच्छी तरह दिग्दर्शन कराया है। सप्तभङ्गी शब्द के सात भागों का विस्तृत विवेचन किया है। ___'सेब ' ( शब्द ) इस शब्द पर निर्वचन, नामस्थापनादि भेद से चार भेद, नित्यानित्यविचार, शब्द का पौद्गलिकत्व, शब्द के दस भेद, शब्द को आकाश का गुण मानने. वालों का खण्डन आदि विषयों पर अच्छी तरह विवेचन किया है। . 'सावय' (श्रावक ) इस शब्द पर श्रावक की व्याख्या, व्युत्पत्ति, अर्थ, श्रावक के लक्षण, उसका सामान्य कर्तव्य, निवासविधि, श्रावक की दिनचर्या, श्रावक के २१ गुण आदि पर अच्छा व विस्तृत प्रकाश डाला है। 'हिंसा' (हिंसा ) इस शब्द पर हिंसा का स्वरूप, वैदिक हिंसा का खण्डन, जिनमंदिर बनवाने में आते हुए दोष का परिहार आदि विषय अच्छे रूप में प्रदर्शित किये हैं। इस भाग में जिन २ शब्दों पर जो २ कथायें उपकथायें आदि आई हैं उनको भी अच्छी तरह समझाकर विशेष रूप से दिया गया हैं ताकि पाठकों को यह भाग समझने में सरलता व सुलभता प्राप्त हो । यहां अभिधान राजेन्द्र कोष की समाप्ति होजाती है। अंत में एक प्रशस्ति दी है जिसमें बताया है कि इस अभिधान राजेन्द्र कोष का निर्माण आचार्यप्रवर श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने किया है। इसका प्रारंभ सियाणा ( मारबाड) में विक्रम संवत् १९४६ में किया था और सूरत में विक्रम संवत् १९६० में इसको समाप्त किया । उपसंहार । अभिधान राजेन्द्र कोष के निर्माता आचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजीने अपने जीवन में घोर परिश्रम किया, जिसकी कल्पना स्वप्न में भी साकार रूप नहीं ले सकती। इन्होंने तमाम शास्त्रों का हर एक विषय का निचोड़ इसमें भर दिया है। जिस किसीको कोई भी विषय धार्मिक, दार्शनिक जैन सिद्धान्त संबंधी देखना हो वह अभिधान राजेन्द्र को उठाकर देखे तो उसे सब वस्तुएं बहुत ही कम समय में एक जगह मिल सकेंगी। प्रत्येक विषय को अच्छी तरह शास्त्रों के द्वारा, युक्तियों के द्वारा, सिद्धान्तों के द्वारा समझाने का पूरा २ प्रयत्न किया है । इस अभिधान राजेन्द्र के संबंध में यदि यों कहा जाय कि — गागर में सागर' भर दिया है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपना प्रतिदिन का पूरा २ कार्य, समाज का कार्य, विहारादि करते हुए भी केवल मात्र चौदह वर्ष में इतना कार्य कर जाना देवशक्ति
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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