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मेवाड़ की प्राचीन जैन चित्रांकन-परम्परा
डॉ. राधाकृष्ण वशिष्ठ
राजस्थानी चित्रकला का प्रारंभिक स्वरूप पश्चिमी भारतीय शैली से बना है। इसके नामकरण हेतु अब तक अनेक प्रयास किये गये हैं। डॉ. कुमारस्वामी ने इसे जैन एवं गुजराती चित्रशैली कहा है। नोर्मन ब्राउन इसे श्वेतांबर जैन तथा पश्चिमी भारतीय शैली कहते हैं। रायकृष्णदास इसे पश्चिमी भारतीय शैली व अपभ्रंश शैली से संबोधित करते हैं तो बेसिलग्रे इसे पश्चिमी भारतीय शैली की अभिधा प्रदान करते हैं। कई विद्वानों की यह भी मान्यता है कि इस शैली के प्रारंभिक उदाहरण एलोरा, मदनपुर आदि के भित्तिचित्रों में भी मिलते हैं। आठवीं सदी के खरतरगच्छ के श्री जिनदत्तसूरि ने राजस्थान में विभिन्न कलाओं को बहुत अधिक संरक्षण प्रदान किया। उन्होनें इस उददेश्य से कई ग्रन्थ लिखवाये। मेवाड़ भी इससे अछूता नहीं रहा। यहां भी अनेक सचित्र व कलापूर्ण जैन ग्रन्थ लिखे गये। यही नहीं, यहां पर जैन शिल्प परंपरा भी काफी विकसित थी। चित्तौड़गढ़ के दिगम्बर जैन स्मारक (१३०० ई.) एवं महावीर मंदिर की मूर्तिकला में जैन शिल्प परंपरा के उत्कृष्ट रूप देखने को मिलते हैं। इन शिल्प कृतियों को देखने पर हम प्रारंभिक राजस्थानी चित्रकला के विभिन्न तत्वों का सीधा संबंध पाते हैं। मेवाड़ में चित्रकला के विकासक्रम को समझने के लिए यहां पर लिखे गये जैन ग्रन्थ भी काफी उपयोगी सामग्री प्रदान करते हैं। हरिभद्रसूरि (७००-७७८ ई.) द्वारा चित्तौड़गढ़ में लिखित 'समराइच्चकहा' में तो चित्रकला संबंधी बहुत सी महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है। सिद्धर्षि कृत 'उपसमिति भवप्रपंच कथा भी इस दृष्टि से उल्लेखनीय है। समराइच्चकहा में समरादित्य के दूसरे भव में सिंहकुमार और कुसुमावली के प्रेम-प्रसंग में चित्रकला संबंधी कई शब्दों का उल्लेख है। चित्र बनाने एवं रंगों को रचने हेतु रंग पेटिका वण्णिया समुगयं (वर्णिक समुद्रक) तथा चित्रपट के लिए 'चित्रवट्टिय' (चित्रपट्टिका) शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसमें राजकुमारी द्वारा हंस और हंसिनियों के चित्र बनाकर दर्शनोत्सुक हंसिनी को चित्रित किये जाने का उल्लेख है। इसी भाव को अंकित करते हुए कुसुमावली की दासी मदनलेखा ने एक द्विपदी छंद बनाकर चित्र पर लिख देने तथा उस चित्रपट्ट को राजकुमार के पास दिखने जाने का प्रसंग है। पेसिया रायधूयाएं जैसे मार्मिक उल्लेख हैं। स्वयं राजकुमार द्वारा हंस का चित्र बनाकर राजकुमारी को प्रेषित करने आदि के संदर्भ इसमें मिलते हैं। चित्तौड़ की शिल्प कृतियों में ऐसी अनेक आकृतियों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
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