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Sumati-Jnana सामग्रियां लगभग ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई. की हैं। इनमें केवल एक प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में और शेष पाचों पद्मासन मुद्रा में हैं। इनमें से केवल दो की पहचान लांछन वृषभ एवं सात सर्पफणों के आधार पर क्रमशः ऋषभ एवं पार्श्वनाथ से संभव है। एक की पहचान यक्ष-यक्षी गोमेध एवं अंबिका के आधार पर तीर्थंकर नेमिनाथ से निश्चित की गयी है। यद्यपि इन यक्ष-यक्षियों का अंकन विवेच्य क्षेत्र में सामान्य रूप में नेमिनाथ के अलावा भी अन्य जिन प्रतिमाओं पर मिलता है।
ऋषभनाथ (प्रथम जिन) प्रतिमा (२६" x १६") लाल बलुए प्रस्तर पर निर्मित है। इसमें ऋषम को पद्मासन मुद्रा में सिंहासन पर आसीन दिखाया गया है। सिंहासन पर लांछन वृषभ अंकित है। कंधे पर केश वल्लरियों का अभाव है। मूर्ति के परिकर का दांया भाग टूट चुका है और शेष बायें भाग में उड्डीयमान मालाधर, चंवरधर व एक देव आकृति का निरूपण है।
तीर्थकर पार्श्वनाथ (४'६" x २१०") को भी पद्मासन मुद्रा में सिंहासनासीन दिखाया गया है। उनके सिर पर सात सर्पफणों का छत्र सुशोमित है। यह प्रतिमा अपेक्षाकृत ठीकठाक स्थिति में है। इसके परिकर में त्रिछत्र, दुन्दुमि, उड्डीयमान मालाधर युगल आदि का अंकन है। इस प्रतिमा की विशेषता है कि इसमें पार्श्वनाथ के दांयी ओर चंवरधारी धरणेन्द्र और बायीं ओर छत्रमय दण्डधारी पद्मावती जो गजासीन हैं, का अंकन है (चित्र ५१५)। यह मूर्ति पार्श्व के जीवनकाल में उनकी तपश्चर्या के दौरान उस घटना को दर्शाती हैं जब मेघमाली के उपसर्गों से पार्श्व की रक्षार्थ धरणेन्द्र और पद्मावती देवलोक से आये थे। इस तरह इस प्रतिमा को पार्श्वनाथ के जीवनकाल की उक्त घटना संबंधी कथानक का निरूपण माना जा सकता है।
एक अन्य प्रतिमा के सिंहासन भाग पर यक्षी अंबिका और यक्ष गोमेघ के अंकन के आधार पर इसे बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ की प्रतिमा कहा जा सकता है। इस प्रतिमा (४'६" x २'१०") में जिन नेमिनाथ को पद्मासन मुद्रा में सिंहासनासीन दिखाया गया है। इस प्रतिमा का परिकर अत्यन्त भव्य है। परिकर में दुन्दुभि, वृक्ष, त्रिछत्र, भामण्डल, चामरधर के अलावा उड्डीयमान मालाधारी युगल, गजारूढ़ अभिषेक करती मानव आकृतियां, अंजलिहस्त मुद्रा में श्रावक एवं श्राविकाएं, मकर तोरण और शार्दूल आकृतियों का निरूपण है। परिकर में कायोत्सर्ग मुद्रा में दोनों सिरों पर ऊपर की ओर एक-एक जिन आकृति विद्यमान है। जिन के सिर पर उन्नत ऊष्णीश एवं लम्ब कर्ण हैं। भामण्डल अपेक्षाकृत बृहद एवं भव्य है (चित्र ११.६)। ___ शेष तीन प्रतिमाओं में लांछन के अभाव में उनकी पहचान दूरूह है। इनमें दो लाल बलुए प्रस्तर पर और एक गुलाबी बलुए प्रस्तर पर निर्मित है। गुलाबी बलुए प्रस्तर पर निर्मित प्रतिमा में जिन को पद्मासन मुद्रा में सिंहासनासीन दिखाया है (चित्र ५१.७)। परिकर में दुन्दुभि, भामण्डल, उड्डीयमान मालाधर युगल और चामरधर आकृतियां निरूपित हैं। इनके अलावा चार लघु जिन आकृतियां (दो पद्मासन और दो कायोत्सर्ग मुद्रा में) भी अंकित हैं। सिंहासन भाग पर यथास्थान यक्ष एवं यक्षी का अंकन है जिनकी पहचान संभव नहीं है। जिन का मुख बुरी तरह खंडित है। शेष दो लाल बलुए प्रस्तर की प्रतिमाओं में से एक में तीर्थंकर को पद्मासन मुद्रा में और एक में कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है। दोनों ही बुरी तरह खंडित है। एक प्रतिमा खण्ड किसी जिन मंदिर का वास्तु अवशेष प्रतीत होता है।
इसके अतिरिक्त एक मानस्तम्भ भी है जिसके शीर्ष पर चारों ओर पद्मासन मुद्रा में चार लघु जिन आकृतियों का निरूपण है (चित्र ५१.८)। इसका दण्ड भाग चतुष्कोणीय है। एक तरफ के दण्ड भाग पर पांच पंक्तियों का एक संवत् १२२० (११६३ ई.) का एक अभिलेख है जिसमें कुंदकुंद अन्वय के सिद्धान्त भीमदेव के किसी शिष्य (नाम अस्पष्ट) का उल्लेख मिलता है (चित्र ११.६)। इस मानस्तम्भ को वर्तमान में मंदिर परिसर में एक ऊंचे चबूतरे का निर्माण कर उसमें
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