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खन्दार (जिला-अशोकनगर, मध्य प्रदेश) स्थित प्राचीन जैन शेलकृत गुहा मंदिर एवं मूर्तियां
सभी जिन प्रतिमाओं को पद्मासन मुद्रा में दिखाया गया है। इनमें पार्श्वनाथ की एक मूर्ति (ऊंचाई २७") हैं जिसमें उन्हें सात सर्पफणों के छत्र युक्त दिखाया गया है (चित्र ५१.२)। तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की भी एक प्रतिमा है जिसमें उन्हें (ऊंचाई २' ३") नौ सर्पफणों के छत्र से शोभायमान दिखाया गया है (चित्र ११.३)। दोनों ही प्रतिमाओं के सिंहासन भाग के नीचे विक्रम संवत् १२८३ ज्येष्ठ सुदी ३ गुरू तिथियुक्त अभिलेख उत्कीर्ण हैं। नौ सर्पफण युक्त प्रतिमा के नीचे चार पंक्तियों का और सात सर्पफण युक्त प्रतिमा के नीचे तीन पंक्तियों के अभिलेख हैं। इनमें चार पंक्तियों का अभिलेख अस्पष्ट और तीन पंक्तियों के अभिलेख में लवकचुंक अन्वय के किसी श्रावक कल्हू द्वारा इस प्रतिमा की स्थापना का उल्लेख है। दोनों ही प्रतिमाएं बुरी तरह खंडित एवं सिरविहीन हैं। इनका परिकर सादा है, केवल सिंहासन का अंकन हुआ है। ____एक प्रतिमा नेमिनाथ (ऊंचाई ३) की है जो पूर्व पार्श्वनाथ प्रतिमाओं के समान सादी है। इसमें सिंहासन के बजाय जिन को सादी पीठिका पर पद्मासनस्थ मुद्रा में लांछन शंख सहित दिखाया गया है (चित्र ५१.४)। इसके निचले भाग में संवत् १२८३ ज्येष्ठ सुदी ३ गुरू तिथि युक्त दो पंक्तियों का एक लेख उत्कीर्ण है जिसमें लवकंचुक अन्वय के साधु महासुचादे के भ्राता वीकल के पुत्र सातन द्वारा प्रतिमा स्थापना का उल्लेख हुआ है। यह भी बुरी तरह खंडित एवं सिरविहीन है।
एक प्रतिमा तीर्थकर शांतिनाथ (ऊंचाई २' ३") की है। यह भी पूर्व प्रतिमाओं के समान सादी, सिरविहीन एवं खंडित है। सादी पीठिका पर लांछन बकरा अंकित है। यह अभिलेख विहीन है। ___ शेष जिन प्रतिमाएं भी सादी, सिरविहीन एवं खंडित हैं। ये २ फुट से लेकर ३ फुट तक ही पद्मासन मुद्रा में हैं। इन पर या तो लांछन अनुपस्थित है या मिट गया है, अतः निश्चित पहचान संभव नहीं है। इनमें से पांच जिन प्रतिमाओं पर संवत् १२८३ ज्येष्ठ सुदी ३ गुरू तिथि युक्त लेख है। इनमें से तीन २ पंक्तियों के और दो ३ पंक्तियों के लेख हैं। दो पंक्तियों के एक लेख में लवकंचुक अन्वय के साधु राल्ह की पत्नी रेल्हीम एवं उनके पुत्र सापदेव का उल्लेख हुआ है। एक अन्य दो पंक्तियों के लेख में श्रीचन्द्र, कनकचन्द्र, देउचन्द्र आदि व्यक्तियों के नामोउल्लेख हैं। अन्य अभिलेख अपठनीय हैं। ___ यक्षी अंबिका के कुल तीन अंकन हैं जिनमें उसे द्विभंग मुद्रा में खड़ा दिखाया गया है। तीनों ही उदाहरणों में उनकी बायीं भुजा में पुत्र का निरूपण है। दो उदाहरणों में सिर के ऊपर पद्मासन मुद्रा में लघु जिन आकृति उत्कीर्ण है। यक्षी को वस्त्राभूषणों से युक्त दिखाया गया है, किन्तु इस स्थल पर पाषाण का अत्याधिक क्षरण होने के कारण यक्षी आकृतियां धूमिल सी हो गयी हैं।
इनके अलावा भी इस गुहा मंदिर में तीर्थंकर चन्द्रप्रभ (आठवें जिन) की पद्मासन मुद्रा में एक लघु प्रतिमा (१२वीं शती ई.) आंतरिक भित्ति में जड़ी है। इस प्रतिमा के चारों ओर चार लघु जिन आकृतियों का निरूपण है। यह प्रतिमा मूल रूप से इस गुहा की नहीं है। इसे अन्यत्र से लाकर यहां गुहा की सम्मुख मित्ति में जड़ा गया है।
इस गुहा मंदिर के अलावा भी अन्य कई जैन गुहा मंदिर एवं मूर्तियां भी निर्मित हैं किन्तु सभी १६वीं शती ई. से लेकर १८वीं शती ई. तक की हैं। १८वीं शती ई. की तीर्थंकर ऋषभनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में एक शैलकृत प्रतिमा विशालकाय है और दूर से ही दिखाई देती है। स्वतन्त्र प्रतिमाएं पर्वत की तलहटी में एक मानस्तम्भ व छह जिन प्रतिमाएं रखी हुई हैं। ये सभी बुरी तरह खंडित हैं। ये सभी कला
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