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बुन्देलखण्ड की अनमोल धरोहर सिद्धक्षेत्र सोनागिर है, नरक की ओर ले जाती है फिर भी तुम जानना चाहते हो तो देखो। इतना कहकर एक मुठ्ठी धूल उठाकर इस पर्वत के चारों ओर फेंक दी और सारा पर्वत सोने का हो गया, उस समय से उसका नाम स्वर्णगिरि हो गया।
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के काल से ही सोनागिर श्रमण संस्कृति का क्षेत्र रहा है। ऋषभदेव ने सर्वप्रथम भारत में सम्यता और संस्कृति का सूत्रपात किया। समूचे देश में विहार करके धर्म-तीर्थ की स्थापना की। ५२ जनपदों का निर्माण किया जिनमें चेदि एक जनपद था, जिसे आज बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है। इसी बुन्देलखण्ड में प्रसिद्ध तीर्थ सोनागिर है। समय-समय पर यहाँ तीर्थकरों का आगमन होता रहा है। सोनागिर आठवें तीर्थकर चन्द्रप्रम की देशनास्थली है। यहाँ १५ बार चन्द्रप्रभ भगवान का समवशरण आया जिनकी चरण-रज से यह पर्वत पवित्र हुआ। इसकी स्मृति स्वरूप मुख्य मंदिर क्रमांक ५७ का निर्माण हुआ जिसमें विक्रम संवत् ३३५ में प्रतिष्ठित भगवान चन्द्रप्रभ की १२ फुट ऊँची ग्रेनाइट प्रस्तर पर निर्मित शैलकृत मनोहारी चमत्कारी खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। मुख्य मंदिर के बाहरी प्रांगण में नंग, अनंग, बाहुबली व २४ तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान हैं। मध्य में विशाल मानस्तम्भ है। मंदिर के सामने ही चन्द्रप्रभ के समवशरण की रचना युक्त विशाल मंदिर है। मंदिर क्रमांक ६० में मेरू पर्वत की रचना है। यह मंदिर चक्की वाला या पिसनहारी के नाम से जाना जाता है। पर्वत पर शोभायमान जिनालय व जिनबिम्ब विभिन्न युगों की उत्कृष्ट एवं मनोहारी वास्तुकला के प्रतीक हैं। मंदिरों में काले, सफेद, लाल, संगमरमर व बलुए ग्रेनाइट पाषाण से निर्मित पद्मासन एवं खड्गासन मुद्रा में भव्य प्रतिमाएं हैं जो छोटी-बड़ी सभी आकारों में हैं। प्रत्येक मंदिर की दीवार पर अर्ध्य समर्पण हेतु दोहा लिखा हुआ है। ७६ जिनालयों में अधिकांश प्रतिमाएं चन्द्रप्रभ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, आदिनाथ व महावीर की हैं। मंदिरों के अलावा मुनियों की चरण पादुकाओं के भी अंकन मिलते हैं।
इस पर्वत पर उपाध्याय १०८ श्री ज्ञानसागर महाराज के मार्गदर्शन में नंदीश्वर द्वीप की विशाल रचना का निर्माण किया गया है। भारत में नंदीश्वर द्वीप की इतनी विशाल रचना ओर कहीं नहीं है। इस विशाल रचना का प्रतिष्ठा समारोह व पंचकल्याणक ६ दिसम्बर से १४ दिसम्बर २००५ में किया गया था जिसमें १७२ संगमरमर की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की गई। नंदीश्वर द्वीप के बाहर विशालकाय सफेद ऐरावत हाथियों की आकृतियां निर्मित की गई हैं।
इनके अलावा पर्वत की तलहटी में २५-३० प्राचीन भव्य मंदिर हैं। सोनागिर पर्वत के ये विशाल एवं अनुपम जिनालय जैन वास्तुकला की धरोहर हैं। अतः मुक्तिपथ हेतु अग्रसर मुनि वृन्दों की तपोभूमि सोनागिर सिद्धक्षेत्र बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर एवं धार्मिक ऊर्जा का प्रमुख केन्द्र है।
संदर्भ ग्रन्थ १. जैन, रामजीत, अवधान, फरवरी २००२, पृ. १२, अ, ब। २. जैन, अनुपम, दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र निर्देशिका, पृ. ६५/
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