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बुन्देलखण्ड की अनमोल धरोहर सिद्धक्षेत्र सोनागिर
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जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिर मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल में सुरम्य एवं सुगम्य पर्वत पर स्थित है जिस पर शिखर युक्त ७६ भव्य जिनालयों की रचना है। यह मोतीमाला के रूप में पर्वत पर अपनी छटा बिखेरे हुए है। सोनागिर जैनों का पावन तीर्थ है। जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर १००८ चन्द्रप्रभु भगवान के भव्य समवशरण के पदार्पण की गौरव पूर्ण स्मृति को अपने अंतः स्थल में सजोए हुए है। इस सिद्ध क्षेत्र से नंग-अनंग सहित पाँच करोड़ मुनि सिद्ध हुए थे जैसा निर्वाण कांड गाथा १० के एक दोहे से भी विदित होता है, यथा
नंग अनंग कुमार सुजान, पांच कोड़ि अरू अर्ध प्रमान मुक्ति गये सोनागिरि शीश, ते वन्दों त्रिभुवन पति ईस । ।
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डॉ. जया जैन
यह तपोभूमि श्रमणों (जैन साधुओं) का निवास स्थान होने के कारण श्रमणगिरि के नाम से भी जानी जाती है । दतिया जिले में दतिया से १७ किमी व ग्वालियर से ७० किमी की दूरी सोनागिरी आगरा - बम्बई रेलवे मार्ग पर स्थित एक स्टेशन भी है। सोनागिर रेलवे स्टेशन से सोनागिर पर्वत की दूरी ५ किमी है जहाँ बस द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सोनागिर को स्वर्णगिरि भी कहते हैं। इस सम्बन्ध में किवदंती है कि उज्जयनी के महाराज श्रीदत्त व उनकी पटरानी विजया के संतान नहीं थी । एक दिन उनके नगर में आदिगत और प्रभागत नामक चारण ऋद्धिधारी मुनिराज पधारे। राजा श्रीदत्त और पटरानी विजया ने आहार के पश्चात् मुनिराज से संतान हेतु जिज्ञासा प्रकट की । मुनिराज ने श्रद्धापूर्वक सोनागिर की वन्दना करने को कहा। पांच दिन राजा-रानी ने वंदना की। कुछ समय पश्चात् सोने के समान सुन्दर बालक का जन्म हुआ, इसी कारण सोनागिर का नाम स्वर्णगिरि रखा गया और इसी नाम से प्रख्यात हुआ । दूसरा कथानक है कि नवीं सदी में उज्जैनी में राजा सिन्धु के पौत्र भर्तृहरि व शुभचन्द्र थे। दोनों को वैराग्य हो गया। शुभचन्द्र जैनेश्वरी दीक्षा लेकर तप करने लगे व भर्तृहरि ने साधु वेश ग्रहण किया। भर्तृहरि को शुभचन्द्र की याद आयी तो अपने शिष्य को पता लगाने भेजा। शिष्य ने जब शुभचन्द्र को दिगम्बर वेश में कृश-काया में देखा तो उसने भर्तृहरि को सारा हाल बता दिया। भर्तृहरि ने दयावश एक रसायन औषधि शिष्य के माध्यम से शुभचन्द्र के लिए भेजी और कहलवाया कि जिस पत्थर पर इस औषधि को डालोगे वह सोना हो जायेगी एवं उसका उपयोग कर आनन्दमय जीवन व्यतीत करें। शुभचन्द्र ने शिष्य के सामने ही रसायन को मिट्टी में फेंक दिया और कहा कि स्वर्ण सम्पदा तो
तुच्छ
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