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'समयसार' के अनुसार आत्मा का कर्तृत्व-अकर्तृत्व एवं भोक्तृत्व.....
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२६. द्रव्य संग्रह-टीका, नेमिचन्द्र, सं० दरबारीलाल कोठिया, ४०. समयसा, गाथा- ३०८-३१०
श्री गणेश प्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला-१६ वाराणसी, ४१. वही, १९४ गाथा १९६६ पृ०८
एदेणदुसो कत्ता आदा णिच्छयबिइहिं परिकहदो। एवं खलु पंचास्तिकाय,
जो जाणदि सो मुंचदि सव्वकत्तित्तं।। समयसार, गाथा- ९७ समयसार, १०५-८१
४३. एतेन विशेषणाद-उपचरित वृत्या भोक्तारं चात्मानं मन्यमाना प्रवचनसार-तत्त्वदीपिका टीका, २९
सांख्या-९७ नाम् निरास:। षड्दर्शनसमुच्चय- सं०, डॉ० समयसार, आत्मख्याति टीका गाथा ८४
महेन्द्रकुमार, जैन न्यायाचार्य, प्रका० भारतीय ज्ञानपीठ समयसार, गाथा ९७
प्रकाशन, वाराणसी, १९७०, कारिका-४९ ३२. नो भौ परिणमतः खलु परिणामो नोभयोः प्रजायेत, वही, ४४. पंचास्तिकाय, गाथा- ६८, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, प्रकाशक८६
श्री परमश्रुत प्रभावक मंडल, श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास, ३३. पंचास्तिकाय, गाथा ६१; प्रवचनसार, ६२, समयसार, १९७७, गाथा-१० १२६
४५.
समयसार, गाथा- ३४५-३४८ ३४. पंचास्तिकाय, गाथा-२७
भोक्तृत्वं न स्वभावोऽस्य स्मृत: कर्तुत्व वच्चितः। अज्ञानादेव ३५.
सांख्यकारिका-११, १९, २०, ५७, २६, ४७, ४९, भोक्तायं तदभावाद्वेदक:। समयसार, गाथा- ९६ सं० रमाशंकर त्रिपाठी, प्रकाशक, बालकृष्ण त्रिपाठी, भदैनी, ४७. समयसार, गाथा- ३१४-२० वाराणसी १९७०.
४८. वही, १९५ ३६. श्रावकाचार-(अमितगति) गाथा-४/३५.
निश्चय नय की दृष्टि से आत्मा के दो ही भेद हैं- मुक्त एवं ३७. समयसार, गाथो ३३८-३९.
संसारी- इन दोनों भेदों में ही भव्य, अभव्य, अशुभोपयोगी, समयसार, गाथा-३४५-३४८
शुद्धोपयोगी सबका समावेश हो जाता है, मोक्षपाहड ५ में ३९. अकर्ता जीवोऽय स्थित इति विशुद्ध स्वरसत: समयसार- आचार्य ने बहिरात्मा, अन्तरात्मा एवं परमात्मा तीन भेद गाथा- ३११
किए हैं।
४९.
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