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आधत्मिक यज्ञ: एक अनुचिन्तन
अचौर्य
ब्रह्मचर्य
३५. अहिंसा- यदा न कुरुते पापं सर्वभूतेषु दारुणम्।
धर्मः स्वयमेव चीर्णः केवलज्ञानलम्भाच्च महर्षिणो ये परमेष्ठिनो कर्मणा मनसा वाचा ब्रह्म सम्पद्यते तदा।।
वीतराग: स्नातका निर्ग्रन्था नैष्ठिका तेषां प्रवर्तित आख्यातः सत्य- यदा सर्वानृतं त्यक्तं मिथ्याभाषा विवर्जिता।
प्रणीतश्च त्रेतायामादौ।" अनवद्यं च भाषेत ब्रह्म सम्पद्यते तदा।। ४०. उत्तरा० २५/१७ अश्वमेधसहस्रं च सत्यं च तुलया घृतम्। ४१. बाह्यलिङ्ग के तीन प्रयोजन हैं: (१) संयमनिर्वाह (२) ज्ञानादिग्रहण अश्वमेधसहस्राद्धि सत्यमेव विशिष्यते।।
और (३) लोक में प्रतीति कराना कि यह अमूक है। उत्तरा० परद्रव्यं यदा दृष्टं आकुले ह्यथवा रहे।
२३/३२ धर्मकामो न गृह्णाति ब्रह्म सम्पद्यते तदा।। ४२. उत्तरा० १२/३८, ३९; २०/४३ से ५०; २२/४६ देवमानुषतिर्यक्षु मैथुनं वर्जयेद्यदा।
४३. वही, २५/३२ से ३५ कामरागविरक्तश्च ब्रह्म सम्पद्यते तदा।।
४४. वही, अध्ययन २३ अकिञ्चनभाव- यदा सर्व परित्यज्य निस्संगो निष्परिग्रहः। ४५. वही, १२/४२
निश्चिन्तश्च चरेद् धर्मं ब्रह्म सम्पद्यते तदा।। ४६. वही, १२/१ उत्तराध्ययनटीका, आत्माराम, पृ० ११२१ से ४७. वही, अध्ययन १३ वाँ ११२५
४८. वही अध्ययन २२ वाँ ३६. दीघनिकाय, कूटदंतसुत्त।
४९. वही, १२/४२ से ४५ ३७. गीतामन्थन- किशोरीलाल, सस्ता साहित्य मंडल, दिल्ली ५०. वही, १२/४६ १९३९, पृ० ९७
५१. वही, १२/४७ ३८. उत्तरा० १२/३९; २५/३०
५२. स्याद्वादमञ्जरी-हिन्दी टीका, संपा० डॉ० जगदीश चन्द्र जैन, ३९. आरण्यक में-"ऋषभ एवं भगवान् ब्रह्मा तेन भगवता ब्रह्मणा परमश्रुत प्रमावक मंडल, अगास १९३५, पृ० १३१
स्वयमेव चीर्णाति प्रणीतानि ब्राह्मणानि। यदा च तपसा प्राप्तपदं ५३. चरणकरणप्पहाणा ससमयपरसमयमुक्कवावारा। यद् ब्रह्म केवलं तदां च ब्रह्मर्षिणा प्रणीतानि तानि पुस्तकानि चरणकरणस्ससारं णिच्छयसुद्धं ण माणंति।। ब्राह्मणानि।"
सन्मतितर्क, संपा०, पं० सुखलाल संघवी, गुजरात पुरातत्त्व ब्रह्माण्ड पुराण में भी लिखा है-“इह हि इच्छवाकुवंशोद्भवेन मंदिर, अहमदाबाद वि०स० १९८२, ३/६७ नाभिस्तेन मरुदेव्या नन्दनेन महादेवेन ऋषभेण दशप्रकारो
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