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लक्ष्मी एवं सरस्वती की प्रतिमूर्ति : आदरणीय श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन
डॉ० सुरेश सिसोदिया *
सम्पन्नता की प्रतिमूर्ति 'लक्ष्मी' एवं विद्या की प्रतिमूर्ति 'सरस्वती' इन दोनों का निवास साथ-साथ भी हो सकता है, इस कथन की सत्यता को वह व्यक्ति सहज ही स्वीकार कर सकता है जो आदरणीय श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित हो ।
मूलत: अमृतसर एवं सम्प्रति फरीदाबाद निवासी श्रीमान भूपेन्द्रनाथ जी जैन से मेरा परिचय विगत दस वर्षों से उस स्थिि में है जब से मैं जैन विद्या के क्षेत्र में अध्ययन अनुसंधान हेतु विद्या-नगरी वाराणसी में आप द्वारा संचालित श्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक बहुश्रुत जैन विद्वान् प्रो० सागरमल जैन के सान्निध्य में जाता रहा हूँ ।
भौतिक दृष्टि से देखें तो श्रीमान् भूपेन्द्रनाथ जी जैन सा० के पास प्रचुर सम्पत्ति है तभी आप एवं आपका परिवार विगत कई वर्षों से पार्श्वनाथ शोधपीठ नामक उस संस्थान का संचालन कर रहा है जहाँ आय के स्रोत सर्वथा बन्द हैं केवल व्यय के मार्ग ही खुले हैं। ऐसी संस्थाओं का संचालन एवं संपोषण आप जैसे लक्ष्मीपुत्र ही कर सकते हैं और कर रहे हैं ।
शैक्षिक दृष्टि से देखें तो पार्श्वनाथ विद्यापीठ की असाम्प्रदायिक संस्थान के रूप में जो ख्याति है वह यहाँ के निदेशक एवं शोधकर्ताओं के कारण तो है ही किन्तु इसके मूल में श्री भूपेन्द्रनाथ जी की सम्प्रदाय निरपेक्ष दृष्टि है। समय-समय पर विद्यापीठ में अधिकारी एवं कर्मचारीगण नये-नये आते रहे, बदलते रहे किन्तु यह विद्यापीठ सदैव सम्प्रदाय निरपेक्ष बना रहा, इसका मूलकारण इस विद्यापीठ का सतत संचालन करने वाले सरस्वती पुत्त श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन की साम्प्रदायिक आग्रहों से सर्वथा विमुक्त दृष्टि ही है ।
श्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ अपनी इस असाम्प्रदायिक दृष्टि को सदैव बनाए आदरणीय भूपेन्द्र नाथ जी जैन सा० शतायु तथा सस्वस्थ जीवन पर्यन्त इसी लगन, निष्ठा, समर्पण एवं असाम्प्रदायिक दृष्टि से पार्श्वनाथ विद्यापीठ का संचालन करते रहें, यही मंगल कामना है ।
* शोधाधिकारी, आगम अहिंसा, समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर ।
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