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________________ उत्कृष्ट समाज सेवी : भाई भूपेन्द्रनाथ जी नेमनाथ जैन* मुझे यह जानकर अपार हर्ष हुआ कि पार्श्वनाथ विद्यापीठ की हीरक जयन्ती के सुअवसर पर आप भाई श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन के सम्मान में अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित करने जा रहें हैं। भाई भूपेन्द्रजी को मैं पिछले दो दशक से जानता हूँ और मेरा सौभाग्य है कि वे मेरे चुनिंदा अभिन्न मित्रों में से एक हैं। वे केवल एक मित्र ही नहीं, बल्कि जीवन के पथ प्रदर्शक रहें है- केवल मेरे ही लिए नहीं बल्कि उन सबके लिए जो उनके निकट सम्पर्क में आयें हैं। श्री बी० एन० जैन साहब का व्यक्तित्व विलक्षण और बहुमुखी है। वे एक सफल उद्यमी उद्योगपति के साथ-साथ उत्कृष्ट समाजसेवी और सुधारक भी हैं और उन्होंने जैन समाज के उत्थान और प्रगति एवं जैन दर्शन व धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निरन्तर बहुमूल्य योगदान दिया है। वस्तुतः श्री पार्श्वनाथ विद्यापीठं की सफलता और यशकीर्ति की कुंजी प्रारम्भ से ही इनके पिता श्री लाला हरजसराय जी और स्वयं इनके कर्मठ हाथों में रही है। इन्होंने अपने बुजुर्गों द्वारा स्थापित एवं पोषित इस संस्था को न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लाकर खड़ा किया, अपितु अपनी बहुमुखी सेवा निष्ठा और लगन से स्वयं ही एक संस्था बन गये हैं। भाई भूपेन्द्र जी के व्यक्तित्व में गहराई है एक विद्वान की, चतुराई है एक उद्यमी की, सादगी है एक नि:स्वार्थ समाजसेवी की, शालीनता और गंभीरता है, एक विशिष्ट अनुभवी की और संस्कार है एक धर्मनिष्ठ, उत्साही और कर्तव्यपरायण इंसान की। " भाई भूपेन्द्र जी के जीवन का लेखा जोखा शब्दों में सदा ही अपर्याप्त रहेगा क्योंकि वह उनकी उपलब्धियों की गहराई तक नहीं पहुँच पाये। वे कभी प्रशंसा के भूखे नहीं रहे, फिर भी यशकीर्ति तो उनके चरण चूमती रही है। ऐसे अनूठे व्यक्ति को मैं सादर और सस्नेह नमन करता हूँ और मेरी यही कामना है कि वे जैन समाज के पथ प्रदर्शक के रूप में अपनी सेवायें आगे भी उतनी ही ऊर्जा, उत्साह और उमंग से देते रहें जैसे देते आये हैं। उन्होंने सदा जीवन में केवल वर्ष नहीं जोड़े बल्कि उम्र के हर बढ़ते वर्ष में जीवन जोड़ा है ऐसा जीवन जो उमंग भरा हो। * संरक्षक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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