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ज्ञाताधर्मकथा की सांस्कृतिक विरासत
१९९ है। जैनों कलाकारों ने पर्वतीय स्थानों में पहाड़ियों को खोदकर एवं एवं व्यास ३२ फुट है, १६वीं शती की कला का भव्य प्रतीक है उनके शिखरों पर भी जैन देवालयों का निर्माण किया, जिससे वह सम्पूर्ण स्तम्भ की शिल्पकला दर्शनीय है। वास्तव में इसे सम्पूर्ण स्थान मंदिर नगर' बन गया। भारत में प्राचीन जैन मंदिरों की संस्कृति का गौरव स्तंभ कहना ही अधिक यक्ति संगत है। चित्तौड़ में बहुलता नहीं है, जितनी अधिकता पन्द्रहवीं सदी में दीख पड़ती है। एक और भी कीर्तिस्तंभ है। आबू में भी एक जैन कीर्तिस्तंभ है। इसका कारण यह हो सकता है कि जीर्ण मंदिर के स्थान पर जैनियों ने नये मंदिर बनवाये। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि पुराने सन्दर्भ मंदिरों को धर्मान्ध लोगों ने नष्ट कर दिया हो।
१. खण्डहरों का वैभव, पृ० ४९ से उद्धृत मानस्तंभ मध्यकाल में जैन वास्तुकला का एक प्रमुख अंग २. On Yuan Chwang's Travels in India. p. 96 बन गया था। मध्यकाल में जैन मंदिर के सम्मुख विशाल स्तंभ ३. The Age of Imperial Unity. pp. 98. 172. 175 निर्मित करने की प्रथा विशेषतः दिगम्बर जैन समाज में रही है। ४ विविधतीर्थकल्प, सम्पादक-मुनि जिनविजय, प्रका० सिंधी दक्षिण भारत और विन्ध्यप्रदेश से ऐसे स्तंभों की उपलब्धि प्रचुर जैन ज्ञानपीठ शांतिनिकेतन वि०सं० १९९० पृ० १७ मात्रा में हुई है। यह मानस्तंभ इन्द्र-ध्वज का प्रतीक अधिक युक्तिसंगत ५. Archaeological Survey of India. Annual Report जान पड़ता है। देवगढ़ आदि में उपलब्ध अधिकतर मानस्तम्भ ऐसे 1905-06.Indological Book House.Varanasi. हैं जिनके ऊपरी भाग में शिखर जैसी आकृति है। बघेलखण्ड एवं pp.98,166. महाकोशल के मानस्तम्भों के छोर पर चतुर्मुख जिन प्रतिमाएँ हैं। ये ६. मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, पृ० १७५-१७६ स्तंभ गोल तथा कई कोनों के बनते थे। मानस्तम्भों पर मूर्तियों एवं ७. Studies in Jain Art-U.P Shah. cultural Research लेख भी अंकित रहते थे।
Society, Banaras. 1955. p. 18 अभी तक जैन कीर्तिस्तंभों का समुचित अध्ययन नहीं हो ८. वही पाया है इस कारण बहुत-से लोग कीर्तिस्तम्भ को मानस्तंभ मान ९. A.S.I.. A.R. 1925. p. Indological Book House बैठते हैं। चित्तौड़ का कीर्तिस्तभ, जिसकी ऊँचाई लगभग ७६ फुट Varanasi. 15.
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