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________________ मानव-संस्कृति का विकास श्री कन्हैयालाल सरावगी किसी भी देश अथवा जाति का इतिहास जानने के पूर्व अन्धविश्वासों ने उनका पोषण कर रीति-रिवाज चलाये। समाज का मनुष्य का इतिहास जानना आवश्यक है। इसका विचार पौर्वात्य उदय घुणाक्षर-न्याय से हुआ और शासन-सूत्र सबलों के हाथ (भारतीय) व पाश्चात्य, इन दो धाराओं द्वारा किया जाता है। पाश्चात्य चले गये जो निर्बलों पर हावी होते। चीनी विचारधारा के उद्गगम विचारधारा में इस्लाम, ईसाई, यहूदी आदि धर्म आते हैं और इन में समाज, राजनीति और धर्म के क्षेत्र के उदय का कारण किसी सबकी प्राय: समान मान्यता है। इनके अनुसार परमात्मा ने सात दिनों अन्तरिक्षीय शक्ति की प्रेरणा और नियमन या आह्वान का फल में इस चराचर दृश्य जगत् की सृष्टि की, सारे जड़ और चेतन पदार्थों मात्र है। का निर्माण किया। चैतन्य सृष्टि में एक मानव-युगल भी बनाया, पौर्वात्य या भारतीय विचार की तीन मुख्य धाराएं हैंजिसे आदम (ऐडम) और हव्वा (ईव) के नाम से जाना जाता है। वैदिक, बौद्ध और जैन। इन धाराओं में (वैदिक और जैन धाराओं में) अर्थात् आदम और हव्वा मानव जगत् के आदि माता-पिता थे। आज उपयुक्त- विषय का विस्तृत विचार हुआ है। बौद्धों ने इसे अनावश्यक, का विराट जन-समूह इन्हीं का वंशज है। सुप्रसिद्ध अर्वाचीन पाश्चात्य अव्याकृत और अनुपयोगी कह कर उस पर विचार ही नहीं किया। विद्वान् डार्विन के अनुसार मनुष्य बन्दर का विकसित रूप है। विभिन्न इस विषय में बौद्ध वाड्मय मूक है किन्तु वैदिक और जैन के देशों की सभ्यता के विकास के विषय में कोई ठोस विचार नहीं पाया अतिरिक्त भारत में अन्य विचारधाराएँ भी रही हैं। ढाई-तीन हजार जाता है। कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनका समुचित समाधान पाश्चात्य वर्षों पूर्व भारत में साढ़े तीन सौ से भी अधिक विचारों (मतों) का वाङ्मय में नहीं मिलता। जैसे वर्णन पाया जाता है। आज भी विभिन्न मतों की संख्या सम्भवतः सौ १. एक युगल अनेक कैसे हुआ? तक पहुँच जायेगी। अधिक विस्तार में न जाकर मोटे तौर पर विचार २. आगे भी युगल ही होते रहे अथवा नर-नारी अलग-अलग कर इन मत-मतान्तरों में कुछ को वैदिक और कुछ को जैन शिविरों उत्पन्न हुए? में एकत्र कर सकते हैं। अस्तु विचार की सुलभता के लिए उनका इसी ३. सामाजिक गठन कैसे हुआ और उसकी आवश्यकता क्यों हुई? रूप में विभाग कर प्रत्येक में मानवीय इतिहास और संस्कृति का ४. शासन-प्रणाली का सूत्रपात कब, कैसे, क्यों और किन परिस्थितियों उद्गम खोजने का प्रयास करना उपयुक्त होगा। में हुआ? पहले हम वैदिक चिन्तन धारा को लें। दूसरों की अपेक्षा ५. धर्म-मतों के उदय के पीछे कौन से कारण थे? वैदिक साहित्य को अधिक विशाल कहने में अतिशयोक्ति नहीं है, ६. शासन और धर्म स्थापना का कार्य ईश्वर के बदले मनुष्य ने क्योंकि वैदिक साहित्य विपुल मात्रा में उपलब्ध है। वेद, उपनिषद् अपने हाथों में कब और कैसे ले लिया? आरण्यक, पुराण तथा अन्य स्फुट साहित्य की विपुल निधि उपलब्ध ७. डार्विन की परिकल्पना का मानव-पूर्वज वानर आज भी अविकसित है और इसके चिन्तक, पुरस्कर्ता एवं साहित्य स्रष्टा हिमालय से पशु क्यों है? सेतुबन्ध तक और अरुणाचल से सिन्धु तक फैले हुए हैं। इसमें कई भारतीय चिन्तन की गहराई में उतरने के पहले यह कह विचार अन्तरभूत हैं परन्तु मुख्य दो हैं- एक सृष्टिवादी और दूसरा देना अनुपयुक्त नहीं होगा कि चिन्तन के धरातल पर भारत की असृष्टिवादी अथवा एक संसार को ब्रह्मा की सृष्टि मानने वाले और तुलना में पश्चिम बहुत बौना है। यूरोप, अरब, अमेरिका, मध्य- दूसरे स्वयंभू मानने वाले। दूसरे शब्दों में सादि और अनादि अर्थात् एशिया आदि सभी एक ही सरणी के विभिन्न कोण और किनारे हैं। जगत् का आरम्भ काल के किसी पटल पर और किसी हेतु से मानने चीन की स्थिति थोड़ी भिन्न है। वहाँ लाओत्से, कन्फ्यूशियस आदि वाले एवं कालातीत और हेतु रहित मानने वाले। पहली कोटि में की विचारधाराएं अपने वैशिष्ट्य के साथ प्रतिष्ठित है। चीनी विचारधारा वेदांत, उत्तरमीमांसा, वैशेषिक आदि और दूसरी में सांख्य, न्याय, भी उपर्युक्त प्रश्नों की गहराई में उतरी हुई दिखाई नहीं देती। पूर्वमीमांसा आदि दर्शनों को रखा जाता है। प्राचीन पाश्चात्य धाराएँ धर्म-मतों के विकास का इतिहास (क) पहली कोटि के अनुसार- सृष्टि के आरम्भ की कथा अनेक तो बताती हैं, परन्तु उनकी उत्पत्ति के विषय में मूक हैं। अर्वाचीनों प्रकार से बताई जाती हैने कुछ अटकलें लगाई हैं कि भय ने धर्म को जन्म दिया और १. आरम्भ में केवल एक ब्रह्म था, जो अन्तरिक्ष में कहीं Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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