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________________ १५० जैन विद्या के आयाम खण्ड- ७ सरस्वती की प्राचीनतम मूर्ति कुषाणकाल (१३२ ई०) की है, जो मथुरा के कंकालीटीले से प्राप्त हुई है। जैन परम्परा की यह सरस्वती मूर्ति भारतवर्ष में सरस्वती प्रतिमा का प्राचीनतम ज्ञात उदाहरण है। द्विभुज सरस्वती का दोनों पैर मोड़कर पीठिका पर बैठे दर्शाया गया है | देवी का मस्तक और दक्षिण भुजा भग्न है। देवी की वामभुजा में पुस्तक प्रदर्शित है। भग्न दक्षिण भुजा में अक्षमाला के कुछ मनके स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं । सरस्वती के दोनों पार्श्वों में दो उपासक आमूर्तित हैं, जिनमें से एक की भुजा में घट प्रदर्शित है और दूसरा नमस्कारमुद्रा में अवस्थित है । उल्लेखनीय है कि इस मूर्ति के बाद आगामी लगभग ४५० वर्षों तक यानी गुप्तवंश की समाप्ति तक जैन परम्परा की एक भी सरस्वती मूर्ति प्राप्त नहीं होती। सरस्वती मूर्ति का दूसरा उदाहरण सातवीं शती ई० का है। राजस्थान के वसंतगढ़ नामक स्थान से प्राप्त मूर्ति में द्विभुज सरस्वती को स्थानक मुद्रा में पद्मासन पर आमूर्तित किया गया है। पद्मासन के दोनों ओर मंगलकलश उत्कीर्ण हैं। सरस्वती की भुजाओं में पद्म और पुस्तक प्रदर्शित है। सरस्वती भामण्डल हार, एकावली एवं अन्य सामान्य अलंकरणों से सज्जित है। द्विभुज सरस्वती की अन्य मूर्ति राजस्थान के ही राणकपुर जैन मन्दिर (जिला पाली) से प्राप्त है । इसमें सरस्वती को दोनों हाथों से वीणावादन करते हुए दर्शाया गया है। समीप ही हंसवाहन उत्कीर्ण है। " - " सरस्वती की संगमरमर की एक मनोहारी प्रतिमा राजस्थान के गंगानगर जिले के पल्लू नामक स्थान में है। १०वीं ११वीं शती ई० की इस मूर्ति में चतुर्भुज सरस्वती को साधारण पीठिका पर खड़ा दर्शाया गया है। पीठिका पर हंसवाहन और हाथ जोड़े उपासक आकृतियाँ निरूपित है । अलंकृत कांतिमण्डल से युक्त देवी के शीर्षभाग में तीर्थंकर की लघु आकृति उत्कीर्ण है। देवी के ऊर्ध्व दक्षिण और बाम करों में क्रमशः सनालपद्म और पुस्तक प्रदर्शित है, जब कि निचले करों में वरद-अक्षमाला और कमण्डल स्थित है। सरस्वती के दोनों पार्थो में वेणु और वीणावादिनी स्त्री आकृतियाँ आमूर्तित हैं । सरस्वती - मूर्ति के दोनों पार्श्वों और शीर्ष भाग में अलंकृत तोरण उत्कीर्ण है, जिस पर जैन तीर्थकरों महाविद्याओं, गन्धवों और गज व्यालों की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। देवी कई प्रकार के हारों, करण्डमुकुट, वनमाला, धोती, बाजूबन्द, मेखला, कंगन और चूड़ियों जैसे अलंकरणों से सुभोभित है। मूर्ति सम्पति बीकानेर के गंगा गोल्डेन जुबिली संग्रहालय (क्रमांक २०३) में है । समान विवरणों वाली कई मूर्तियाँ खजुराहो (मध्यप्रदेश), तारंगा एवं विमलवसही और सेवाड़ी जैसे जैन स्थलों में हैं। ऐसी एक मूर्ति राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली (क्रमांक- १/६/२७८) में भी शोभा पा रही है। झांसी जिले के अन्तर्गत देवगढ़ में भी ग्यारहवीं शती ई० की एक मनोज्ञ सरस्वती-मूर्ति है । जटामुकुट से सुशोभित चतुर्भुज सरस्वती स्थानकमुद्रा में सामान्य पीठिका पर खड़ी हैं। सरस्वती की भुजाओं में अक्षमाला व्याख्यानमुद्रा, पद्म वरदमुद्रा और पुस्तक प्रदर्शित है। मूर्ति के शीर्षभाग में तीन लघु तीर्थंकर मूर्तियाँ और पार्श्वों में चार सेविकाएँ Jain Education International हैं आमूर्तित हैं। सरस्वती की दो मूर्तियाँ ब्रिटिश संग्रहालय में भी संकलित राजस्थान से प्राप्त ११वीं १२वीं शती ई० की पहली मूर्ति में चतुर्भुज सरस्वती त्रिभंग में खड़ी हैं। देवी की दो अवशिष्ट वाम भुजाओं में अक्षमाला और पुस्तक प्रदर्शित है। शीर्षभाग में पाँच लघु तीर्थंकरमूर्तियाँ एवं पीठिका पर सेवक और उपासक आमूर्तित हैं । दूसरी मूर्ति संवत् १०९१ (१०३४ ई०) में तिव्यकित है। लेख में स्पष्टतः वाग्देवी का नाम खुदा है। बड़ौदा संग्रहालय की ११वीं - १२वीं शती ई० की हंसवाहना चतुर्भुज सरस्वती मूर्ति में देवों के हाथों में वीणा, वरद-अक्षमाला, पुस्तक एवं जलपात्र प्रदर्शित हैं। पार्श्ववर्ती चामरधारिणी सेविकाओं से सेव्यमान सरस्वती विभिन्न अलंकरणों से सज्जित है। राणकपुर की चतर्भुज मूर्ति में देवी को ललितमुद्रा में आसीन दिखाया गया है। देवी की भुजाओं में अक्षमाला, वीणा, अभयमुद्रा और कमण्डलु है । एक अन्य उदाहरण में चतुर्भुज सरस्वती हंस पर आरूढ़ है और उनकी एक भुजा में अभयमुद्रा के स्थान पर पुस्तक है। चतुर्भुज सरस्वती की एक सुन्दर प्रतिमा राजपूताना संग्रहालय अजमेर में है । बांसवाड़ा जिले के अर्थुणा नामक स्थान से प्राप्त मूर्ति में देवी वीणा, पुस्तक अक्षमाला और पद्म धारण किए हैं। समान विवरणोंवाली मूर्तियाँ कुंभारिया के नेमिनाथ एवं पाटण के पंचासर मन्दिरों (गुजरात) और विमलवसही में हैं। विमलवसही की एक चतुर्भुज मूर्ति में हंसवाहना सरस्वती की तीन अविशिष्ट भुजाओं में पद्म पद्म और पुस्तक है चतुर्भुज सरस्वती की १३वीं शती ई० की एक स्थानक मूर्ति हैदराबाद संग्रहालय में है। हंसवाहना देवी के करों में पुस्तक, अक्षमाला, वीणा और अंकुश (या कन) हैं। परिकर में उपासक और तीर्थंकर पार्श्वनाथ की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। राजस्थान के भरतपुर जिले के बयाना नामक स्थान से प्राप्त चतुर्भुज मूर्ति में देवी का वाहन मयूर हैं। देवी के करों में पद्म पुस्तक, वरद और कमण्डलु हैं। ( सरस्वती की बहुभुजी मूर्तियों के उदाहरण मुख्यतः गुजरात तारंगा ) और राजस्थान (विमलवसही एवं लूणवसही) के जैन स्थलों में हैं । षड्भुज सरस्वती की दो मूर्तियाँ लूणवसही में हैं। दोनों उदाहरणों में सरस्वती हंस पर आसीन हैं। एक मूर्ति में देवी की पाँच भुजाएँ खण्डित हैं और अवशिष्ट एक भुजा में पद्म है। दूसरी मूर्ति में दो ऊपरी भुजाओं में पद्म प्रदर्शित है, जब कि मध्य की भुजाएँ ज्ञानमुद्रा में हैं। निचली भुजाओं में अभयाक्ष और कमण्डलु चित्रित हैं। अष्टभुज सरस्वती की हंसवाहना मूर्ति तारंगा के अजितनाथ मन्दिर में है । त्रिभंग में खड़ी देवी के ६ अवशिष्ट करों में पुस्तक, अक्षमाला, वरदमुद्रा, पद्म, पाश एवं पुस्तक प्रदर्शित है। सरस्वती की एक षोडशभुज मूर्ति विमलवसही के वितान पर उत्कीर्ण है । नृत्यरत पुरुष आकृतियों से आवेष्टित देवी भद्रासन पर आसीन है। देवी के अवशिष्ट हाथों में पद्म, शंख, वरद, पद्म पुस्तक और कमण्डलु प्रदर्शित है। हंसवाहना देवी के शीर्षभाग में तीर्थंकर मूर्ति उत्कीर्ण हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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