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________________ दृष्टि को महत्त्व न दिया जाय। मेरे लिए कितना आवश्यक है इसका निर्णय व्यक्ति नहीं समाज करेगा। व्यक्ति का निर्णय शोषण को जन्म देता है पर समाज का निर्णय अपरिग्रह की भावना को । समाज का निर्णय जनतांत्रिक राज्य का निर्णय कहा जा सकता है। राज्य सामाजिक आवश्यकतानुसार परिग्रह के परिमाण को निश्चित कर सकता है, अर्थात् कितना व्यक्ति के पास रहे और कितना व्यक्ति से समाज को चला जाय यदि एक व्यक्ति १०० मिलों का मालिक है तो उसके लाभ को वह व्यक्ति कितना रखे और समाज के पास कितना जाय इसका निर्णय व्यक्ति नहीं समाज ही करेगा । । कभी-कभी यह कहा जाता है कि परिवाह के परिमाण की भावना समाज की प्रगति को अवरुद्ध करने वाली होती है। किन्तु मेरे विचार से ऐसा मानना उचित नहीं है। अपरिग्रह की भावना व्यक्ति की उत्पादन शक्ति को क्षीण नहीं करती, पर उसकी संग्रह शक्ति को सीमित करने की बात कहती है । अत्याधिक संग्रहवृत्ति एक मानसिक रोग है और स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए इस रोग को समाप्त करना आवश्यक है। समाज की प्रगति उत्पादन शक्ति से होती है, संग्रहवृत्ति से नहीं । अत: अपरिग्रह का मापदंड हुआ समाज का वस्तुओं के परिमाण के विषय में निर्णय एक ऐसा देश हो सकता है जहां किसी व्यक्ति के पांच भवन भी परिग्रह न माने जायें और एक ऐसा देश भी हो सकता है जहां एक भवन का होना भी परिग्रह को कोटि में आये इस तरह से कहा जा सकता है कि मूर्छा की तीव्रता व मन्दता का संबंध राजस्थान अपने प्राचीन जैन मंदिरों (प्रासादों) के लिये देशभर में प्रसिद्ध रहा है। इन प्रासादों की भव्यता और वास्तुकला दोनों को ही देखकर आज के अध्येताओं को आश्चर्य होता है। राजस्थान में बीकानेर राज्य अपनी गरम जलवायु और मरुभूमि के हृदय स्थल पर बसे होने के कारण बहुत ही शुष्क प्रदेश के रूप में जाना जाता रहा है। बीकानेर राज्य की साहित्य, कला, वास्तुकला एवं वीरता में अपनी अलग पहचान रही है। इसकी स्थापना में भी जैन श्रीमंतों- श्रावकों का प्रमुख हाथ रहा है । जब राव बीका जी जोधपुर से निकल कर जांगल प्रदेश में आये तो उनके साथ में लाखससी बैद, चौथमल कोठारी, वरसिंह बच्छावत साथ में थे । बीकानेर का सौभाग्य कि रहा जैन ओसवाल घराने के ही बच्छावत परिवार, बैद परिवार, सुराणा परिवार, कोचर परिवार और राखेचा परिवार के ही वंशधर पीढ़ी दर पीढ़ी दर दीवान बाह्य वस्तुओं की संख्या से नहीं है पर सामाजिक परिस्थिति में वस्तुओं के परिमाण के सम्बन्ध में समाज के निर्णय से है। सामाजिक परिस्थियों के बदलने से बाह्य वस्तुओं के परिमाण भी बदलते जायेंगे । अमरीका के परिग्रह परिमाण के विचार में और भारत के परिग्रह परिमाण के विचार में अन्तर होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि अपरिग्रहवादियों ने परिमाण के प्रश्न को खुला ही रखा है। देश काल के अनुसार परिणाम बदला जा सकता है। * बीकानेर का जैन वास्तुकला का अनूठा त्रैलोक्य दीपक प्रासाद श्री हजारीमल वाँठिया Jain Education International यदि परिमाण का माप समाज है तो भारत जैसे देश में कर के माध्यम से, भूमि-सीमा आदि के माध्यम से परिमाण को निश्चित करना अपरिग्रह की भावना को दृढ़ करना है। भारत के अधिकांश लोगों को देखते हुए हम सभी किसी न किसी रूप में शोषणवादी हैं। हमारा एक पेंट एक मकान, एक शर्ट भी परिग्रह ही है क्योंकि भारत के करोड़ों लोग इससे भी वंचित हैं। अपरिग्रह की भावना समाजवाद की दिशा में हमारे देश को अग्रसर कर सकती है, क्योंकि अपरिग्रह का मापदण्ड वस्तु परिमाण के सम्बन्ध में समाज का निर्णय है व्यक्ति का नहीं जिस प्रकार अहिंसा रसोई घर तक सीमित रह गयी उसी प्रकार अपरिग्रह थोथे दान देने तक । एक स्कूल बनवाने, अस्पताल बनवाने आदि में हमने अपरिग्रह को सीमित कर दिया। वास्तव में अपरिग्रह तो सारी मानव जाति को सम्मान से जीने देने की एक सामाजिक कला है और इस तरह से महाबीर का अपरिग्रह का सिद्धान्त समाज को विकसित करने का एक अमोघ मंत्र है । (प्रधान मंत्री) और सेनानायक (कमान्डर इन चीफ) के पदों पर आसीन रहे और राज्य की श्री वृद्धि के साथ जैन परचम को भी फहराया। शहर में चौबीस जिन मंदिरों की स्थापना हुई । अनेक जैन ज्ञान भंडार स्थापित हुये इनमें दीवान कर्मचंद्र बच्छावत का नाम सिरमौर है जो बादशाह अकबर के परम मित्र और विश्वसनीय व्यक्ति थे। वि० [सं० १५२२ आसोज सुदि १० को मंडोर (जोधपुर) से गौरे भैंरूजी की मूर्ति को साथ लेकर राव बीकाजी के साथ १०० घुड़सवार, ५०० पैदल सैनिकों के साथ इस जांगल प्रदेश में आये और आस-पास की पूरी धरती पर अपना कब्जाकर वि० सं० १५४५ वैसाख सुदि २ शनिवार को बीकानेर के किले की जो राती घाटी में स्थित हैउसकी नींव माता करणीजी के हाथ से लगवाई, जिसके लिये निम्न दोला अभी तक प्रसिद्ध है - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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