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________________ १२० जैन विद्या के आयाम खण्ड-७ के ग्रंथों की संख्या प्रचुर है, किंतु उन ग्रंथों की भी वही स्थिति है जो १०. डम्भ क्रिया धर्मसिंह धर्मवर्द्धन हिंदी --------- जैनाचार्यों द्वारा लिखित ज्योतिष के ग्रंथों की है, जैन समाज ने तथा ११. पथ्यापथ्य महो० रामलालजी ---- प्र० सचित्र आयुर्वेद अन्यान्य जैन संस्थाओं ने जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत धर्म-दर्शन-न्याय- १२. रामनिदान टवा सहित उपर्युक्त ---- वीर सं० २४३१ साहित्य-काव्य-अलंकार आदि के ग्रंथों के प्रकाशन की तो व्यवस्था की १३. कोकशास्त्र चौपाई नर्बुदाचार्य कामशास्त्र में है, उसमें रुचि दिखलाई और उसके लिए पर्याप्त राशि भी व्यय की है, प्रासंगिक चिकित्सा प्रकाशित किंतु आयुर्वेद और ज्योतिष के ग्रंथों के प्रति कोई लक्ष्य नहीं दिया । यही १४. रसामृत माणिक्यदेव कारण है कि इस साहित्य की प्रचुरता होते हुए भी यह सम्पूर्ण साहित्य जैनेतर वैद्यक ग्रन्थों पर जैनाचार्यों द्वारा कृत टीकाएँ अभी तक अंधकारावृत्त है । अब तो स्थिति यहाँ तक हो गई कि जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत जिन ग्रंथों की रचना का पता चलता है। उन ग्रंथों १. योगरत्नमालावृत्ति गुणा सं०१२९६ ५० आधिर दि० का अस्तित्व ही हमारे सामने नहीं है। उनके स्थानों पर स्वामी समन्तभद्र २. अष्टांगहृदय टीका सं०१८३५ के वैद्यक ग्रंथ का उल्लेख मिलता, किंतु वह ग्रंथ अभी तक अप्राप्य है। ३. पथ्यापथ्यम टवा चैनसुख मुनि आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ योगरत्नाकर में भी पूज्यपाद के नाम से अनेक ४. माधवनिदान टवा ज्ञानमा हेमनिधान सं०१७३३ योग उद्धत हैं तथा 'श्रीपूज्यपादोदितं' आदि कथनों का उद्धरण देते हए ५. सम्निपातलिका अनेक अजैन विद्वान् वैद्यकी से अपना योगक्षेम चलाते हए देखें गए हैं। ६. योगशतक टीका मूल वररुचि संप्रतभद्र (समन्तभद्र) सं०१७३१ किन्तु अत्यधिक प्रयत्न किए जाने पर भी श्री पूज्यपाद द्वारा विरचित ग्रंथ श्वेताम्बर हिन्दी वैद्यक ग्रन्थ प्राप्त नहीं हो सका। इसी प्रकार और भी अनेक ग्रन्थों का प्रकरणांतर . १. वैद्यमनोत्सव नयनसुख सं०१६४९ सोहनन्द नगर से उल्लेख तो मिलता है, किंतु ढूँढने पर उनकी उपलब्धि नहीं होती। . २. वैद्यविलास तिव्व सहाबा मलूकचंद्र सं०१७२० शक्की नगर जैनाचार्यों के आयुर्वेद सम्बंधी ग्रंथों में जगत् सुन्दरी प्रयोगमाला ३. रामविनोद रामचंद्र सं०१६६२ नामक ग्रंथ सम्भवत: सबसे अधिक प्राचीन है, योगचिंतामणि, वैद्यमनोत्सव, ४. वैद्यविनोद रामचंद्र सं०१७२६ मराठ मेघविनोद, रामविनोद, गंगयतिनिदान आदि ग्रंथ भी प्रकाशित हुए हैं, ये ५. कालज्ञान लक्ष्मीवल्ला सं०१७४१ ग्रंथ श्वेताबर आचार्यों द्वारा विरचित हैं । गत शताब्दी के प्रसिद्ध ६. कविविनोद मानकवि सं०१७५३ लाहौर चिकित्सक जैन यति रामलाल जी का भी एक बड़ा ग्रंथ प्रकाशित हुआ ७. कविप्रमोद मानकवि सं०१७४६ कार्तिक सं०२ है इस प्रकार ये कुछ ही ग्रंथ अभी प्रकाशित हुए हैं, इसके विपरीत ८. रसमंजरी समरथ सं०१७६४ अप्रकाशित जैन वैद्यक ग्रंथों की संख्या अधिक है। मुझे श्री अगरचंद ९. मेघविनोद मेघमुनि सं०१८३५ फगवाड़ा जी नाहटा से जैनाचार्यों द्वारा लिखित आयुर्वेद संबंधी ग्रंथों की जानकारी १०. मेघविलास मेघमुनि सं०१८७२ अमृतसर प्राप्त हुई जो निम्न प्रकार है - ११. लोलिम्बराज भाषा यति गंगाराम सं०१८८३ अमृतसर (वैद्य जीवन) श्वेताम्बर जैनाचार्यों द्वारा रचित वैद्यक ग्रन्थ १२. सूरज प्रकाश भाव दीपक यति गंगाराम सं०१८८८ अमृतसर ग्रन्थ नाम १३. भावनिदान यति गंगाराम ग्रन्थकार भाषा रचनाकाल १. योगचिंतामणि मूल हर्षकीर्ति सूरि संस्कृत सं०१६६२ दिगम्बर जैन वैद्यक ग्रन्थ भाषा टीका नरसिंह खरतर १. वैद्यसार पूज्यपाद २. वैद्यकसारोद्धार हर्षकीर्तिसूरि संस्कृत सं०१६६२ २. निदान मुक्तावलि पूज्यपाद ३. ज्वरपराजय जयरत्न संस्कृत ३. मदन कामरत पूज्यपाद ४. वैद्यवल्लभ हस्तिरुचि संस्कृत ४. कल्याणकारक उग्रदित्याचार्य ५. वैद्यकसाररत्न चौपाई लक्ष्मी कुशल गुजराती सं०१६६४ ५. सुकरयोगरत्नावलि पार्श्वदेव ६. सुबोधिनी वैद्यक लक्ष्मीचंद्र हिंदी फा० सु० ६.बालगृहचिकित्सा देवेन्द्रमुनि ७. लंघन पृथ्योपचार दीपचंद्र संस्कृत ----------- ७. वैद्य निघण्टु अमृतमुनि (कन्नड लिपि) ८. बाल चिकित्सा निदान ............ ----- सं०१७९२ (अकारादि (निघण्टु) ९. योगरत्नाकर चौपाई नयन शेखर गुजराती -------- ८. वैद्यामृत श्रीधरदेव Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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