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मानसिकता उन्हें रुचिकर नहीं लगी और शासकीय सेवा को छोड़कर १९४७ में वे अपने पारिवारिक व्यवसाय के साथ जुड़े और उस व्यवसाय को एक नया आयाम देने का प्रयत्न किया। उस समय तक उनका परिवार मुख्य रूप से तैयार वस्तुओं को खरीद कर अथवा विदेशों से मंगाकर उन्हें व्यापारियों को बेचा करता था। श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन अपने देश में वस्तुओं का उत्पाद हो इस दृष्टि को लक्ष्य में रखकर अपने ताऊजी के सुपुत्र श्री शादीलाल जी के साथ जुड़कर बरार लायन्स बटन्स प्रा. लि. के नाम से एक फैक्ट्री की स्थापना की और उसके संचालक का दायित्व ग्रहण किया। उसके बाद आपके मार्ग-दर्शन में परिवार ने न्यूकेम प्लास्टिक लि०, न्यूवेयर इण्डिया लि०, फरीदाबाद टेक्सटाइल्स प्रा. लि., आदि उत्पादक इकाईयों की स्थापना की और उनका संचालन किया । न्यूकेम प्लास्टिक लि. के आप प्रारम्भ से लेकर मार्च १९७७ तक मैनेजिंग डाइरेक्टर रहे। आपके द्वारा स्थापित उत्पादक इकाइयों की विशेषता रही कि उन्होंने अपने उत्पादनों की गुणवत्ता और प्रामाणिकता को बराबर बनाए रखा । फलत: कभी-कभी निम्न स्तरीय उत्पादनों से बाजार में प्रतिस्पर्धा में असफल भी होना पड़ा, फिर भी आपने अपने उत्पादन की गुणवत्ता और प्रामाणिकता के साथ कभी समझौता नहीं किया । चाहे आपको इस संबंध में आर्थिक हानि ही क्यों न उठानी पड़े। यह एक ऐसी विशेषता है जो वर्तमान युग में दुर्लभ है । अनेक अवसरों पर परिस्थितियों से समझौता करने में चाहे आप सफल न रहे हो किन्तु अपनी प्रामाणिकता या साख को आपने यथावत् बनाए रखा । चाहे आपकी और आपके परिजनों के निर्देशन में कार्यरत इन इकाईयों ने अधिक लाभ न कमाया आर्थिक लाभ न कमाया तो किन्तु अपनी उत्पाद की मानकता में कोई अन्तर नहीं आने दिया।
लगभग सन् १९८० के पश्चात् आप इन पारिवारिक दायित्वों से मुक्त रह कर मुख्य रूप से समाज सेवा के कायों में ही लगे रहे । व्यवसाय के क्षेत्र में रहते हुए भी आपने अनेक गौरवपूर्ण पद प्राप्त किये। आप Institute of Marketing Management, New Delhi के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे । इसी प्रकार YMCA, Institute of Eng. Faridabad के बोर्ड आफ गवर्नर के सदस्य रहे । इसी प्रकार रोटरी क्लब चेरिटेबल ट्रस्ट स्कूल, फरीदाबाद के प्रोजेक्ट चेयरमैन के रूप में आपकी सेवाओं को सम्मानित भी किया गया था । परमार्थ फन्ड सोसायटी, अमृतसर और पार्श्वनाथ विद्याश्रम (अब पार्श्वनाथ विद्यापीठ) के क्रमश: अध्यक्ष व सचिव हैं। पार्श्वनाथ विद्याश्रम आज पार्श्वनाथ विद्यापीठ के रूप में जिन उँचाइयों तक पहँच पाया है उसके पीछे आपका सहयोग व सेवा-भाव ही प्रमुख है।
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