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तनाव : कारण एवं निवारण
उवसमेण हणे कोहं, मद्दवया जिणे। Stress Management, Souvenir Press Ltd. London, मायं चाज्जव भावेणं, लोभ संतोषओ जिणे ।। Ist Edition 1996, Page 18.
अर्थात क्रोध को उपशम से, मान को मदता से, माया को 4. Tension is a state of disequilibrium, which disposes सरलता से और लोभ को संतोष से जीतना चाहिए।
the organism to do somthing to remove the stimu
lating condition. संकल्प दृढ़ता से तनाव मुक्ति
Gates & Others, Educational Psychology, Page301. संकल्प में अनन्त शक्ति है । दृढ संकल्प के द्वारा मश्किल 5. Tension means a general sense of disturbance of से मुश्किल कार्य भी आसान हो जाता है। मुनि मोहन लाल शार्दूल ने
equilibrium and of readiness to atler behaviour to भी कहा है - "मनुष्य के संकल्प में अपरिमित शक्ति होती है। जब वह
meet some almost distressing factor in the sitution. संकल्प बल को संजोकर किसी अनुष्ठान के लिए प्रस्तुत होता है तो
Drever Dectionary, An Introduction to
Psychology of Education, Page- 296. कुछ भी असंभव नहीं रह जाता है। मनुष्य जब सुदृढ़ निर्णय करके बंधन
6. Norman Tallent, Psychology of Adjustment, तोड़ना चाहे तो वह प्रत्येक बंधन तोड़ सकता है, इसमें कोई संशय
___Nostrand, Ist Edition, Page461.' नहीं।६० अत: मानव दृढ़ संकल्पित हो तनावों से अवश्य ही मुक्त हो ,
51 7. Stress may be defined broadly as the external सकता है।
stimulus condition, noxious or depriving which
demand very difficult adjustment-Rosen and Gegary. संयमित आहार से तनाव मुक्ति
डॉ० एच० के० कपिल, आधुनिक नैदानिक मनोविज्ञान, हर प्रसाद कहा गया है "जैसा खाये अन्न, वैसा होगा मन" । व्यक्ति का भार्गव, आगरा, प्रथम संस्करण, १९९१-९२, पृष्ठ ३०४। भोजन यदि तामस व राबस की अपेक्षा सात्विकता से ओत-प्रोत है तो ८. युवाचार्य महाप्रज्ञ, प्रेक्षाध्यान: कायोत्सर्ग, जैन विश्व भारती, लाडनूं उसके आचार-विचार में भी शुद्धता, निर्मलता और भव्यता परिलक्षित तृतीय संस्करण १९८९, ई० सन् पृष्ठ-१ । होगी, क्योंकि हमारे मन की सम्बन्ध हमारे आहार से होता है । हम जैसा ९. Edward A.Charlesworth and Ronald G. Nathan, आहार लेंगे, हमारे वैसे ही विचार होंगे । अखाद्य और अपेय पदार्थ Stress Management, London, Page 4. आत्मतत्त्व को अपकर्ष की ओर ले जाते हैं। जिससे हमारे शरीर के १०. युवाचार्य महाप्रज्ञ, प्रेक्षाध्यान: कायोत्सर्ग, लाडनं, पृष्ठ-२। मुख्य अंगों (हृदय; मस्तिष्क आदि) पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए ११. वही, पृष्ठ-३।। कहा गया है कि तनाव जैसी भंयकर स्थिति से बचने के लिए मन की १२.Charlesworth and Nathan, Stress Management, स्वस्थता अनिवार्य है और मन तभी स्वस्थ रह सकता है जब, निरामिष,
London, Page 20 संतुलित एवं वासनाओं को उद्दीप्त न करने वाले पदार्थ यानी सात्विक
१३. युवाचार्य महाप्रज्ञ, प्रेक्षाध्यान : कायोत्सर्ग, लाडनूं, पृष्ठ-५। भोजन ही ग्रहण किये जायें।६१
१४.जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (खण्ड २) जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, प्रस्तुत आलेख में संक्षेप में तनाव मुक्ति के कुछ उपाय बताये
दिल्ली, तृतीय संस्करण १९९२ ई० सन् पृष्ठ.३३। गये हैं, जिससे हम सर्वथा तनाव मुक्त हो सकते हैं । सही ढंग से यदि
१५. कोहं माणं च मायं च लोभं च पाववड्वणं ।
वमे चत्तारि दोसे उ इच्छंतो हियमप्पणों ।। इन्हें जीवन में उतारा जाय तो मानव जीवन से तनाव शब्द ही गायब
दशवैकालिक, वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी, जैन श्वेताम्बर जो जायेगा । जब व्यक्ति संयमित जीवन यापन करने लगेगा तो व्यक्ति
तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, वि० संवत् २०२०, ८/३६। ही नहीं वरन् परिवार, समाज, राष्ट्र और यहां तक कि विश्व भी तनाव
१६. माया- लोभेहिंतो रागो भवति। मुक्त हो जायेगा।
कोह-माणेहिं तो दोसो भवति ।। - निशीथचूर्णि, गाथा १३२।
उपाध्याय अमरमुनि, सूक्ति त्रिवेणी, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, सन्दर्भ
प्रथम संस्करण १९६८ ई० पृष्ठ २२२ । १. डॉ. हरदेव बाहरी, अंग्रेजी-अंग्रेजी हिन्दी कोश, ज्ञानमण्डल लिमिटेड. १७. उवसमेण हणे कोहं माणं भद्दवया जिणे। वाराणसी, प्रथम संस्करण १९९५ ई० सन, पृष्ट १०८३ ।
मायं चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिणे ।। २. पी० डी० पाठक, शिक्षा मनोविज्ञान, विनोद पुस्तक मन्दिर,
दशवैकालिक, आचार्य तुलसी, कलकत्ता, विक्रम संवत् २०२०, ___ आगरा, तीसवां संस्करण, १९९६ ई० सन् पृष्ठ-४१२।
८/३६। 3. Edward A. Charlesworth and Ronald G. Nathan,
१८.जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (खण्ड-२) जिनेन्द्र वर्णी, दिल्ली, पृष्ठ३४
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