SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डॉ. हीरालाल जैन : ग्रंथ परिचय डॉ. धरमचंद जैन* यस्य नैसर्गिकी प्रज्ञां सर्वार्थगामिनीम्। ज्ञाताः सर्वज्ञ सद्भावे निरारेका मनस्विनः।। उनकी स्वाभाविक सर्वार्थगामिनी प्रज्ञा देखकर विद्वतजन् सर्वज्ञ के सद्भाव के विषय में संदेह रहित हो जाते थे। भारत में आर्यभाषा का विकास प्रमुख रूप से त्रिस्तरीय माना गया है। एक प्राचीन युग जिसमें वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत की काव्य-भाषा आती है। दूसरा मध्य युग जिसमें लोकभाषाओं का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास हुआ। बौद्धों के त्रिपिटिक की पाली व जैनागमों की अर्धमागधी मध्य युग का पहला चरण है। दूसरा चरण दूसरी शती से पांचवी शती तक है। इसके बाद अंतिम सोपान जिसे अपभ्रंश काल के नाम से जाना जाता है। अपभ्रंश का विकास दसवीं शताब्दी तक चला और उसके साथ आर्य भाषा के विकास का मध्य युग या द्वितीय स्तर समाप्त होकर तृतीय स्तर का प्रादुर्भाव हुआ जिसकी प्रतिनिधि हिन्दी, मराठी, गुजराती, बंगाली आदि आधुनिक भाषाएँ हैं वस्तुतः अपभ्रंश से ही हिन्दी आदि भाषाओं का विकास हुआ है और इस दृष्टि से इस भाषा के स्वरूप का बड़ा महत्व है। अपभ्रंश की व्याकरणिक विशेषताओं के अतिरिक्त उसमें काव्य रचना की बिल्कुल नई प्रणालियों और नये छंदों का प्रयोग पाया जाता है। दोहा और पद्धड़िया, छंद, अपभ्रंश काव्य की अपनी वस्तु हैं और इन्हीं से हिन्दी के दोहों व चौपाइयों का आविष्कार हुआ। अपभ्रंश भाषा में लिखा गया प्रचुर साहित्य अधिकांशत: जैन मनीषियों और कवियों द्वारा लिखा गया है। संभवतः इसीलिए आर्यभाषा और साहित्य के विकास का अध्ययन करने वालों ने उसे धार्मिक साहित्य मानकर साहित्यिक अध्ययन की श्रेणी में शामिल नहीं किया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक हिन्दी साहित्य की भूमिका में इस तथ्य की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि मध्य युग के एक हजार वर्ष का साहित्य लोक जीवन से सम्पृक्त है। स्मार्त और बौद्ध दोनों ही हिन्दी के जन्मकाल के समय लोकमत का प्राधान्य स्वीकार कर चुके थे। जैनियों में तो लोकजीवन और लोकभाषा के प्रभुत्व वाली पुष्ट धार्मिक परंपरा ही थी। * एम.ए., पी-एच.डी., छतरपुर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy