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केरली संस्कृति में जैन योगदान
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रचा गया। उक्त त्रेसठ संतों में प्रथम तीन तो संबंदर, अप्पर और सुंदरर हैं। केरल के केवल दो ही संत हैं। छः ऐसे भी हैं जो कहां के थे यह पता नहीं है। (लेखक की जानकारी 1990 के लगभग की) इस पुराण पर जैन प्रभाव है ऐसा कुछ निष्पक्ष विद्वान स्वीकार करते
खक ने अडयार लाइब्रेरी में एक पुराविद को यह प्रभाव बताया तो वह बोले which is prior? मैंने कहा ours.
- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और भाषा में भी अर्थात प्राचीन काल से ही जैन ग्रंथों में 63 शलाकापुरुष या श्रेष्ठ पुरुषों के जीवन-विवरण उपलब्ध हैं। इस संख्या में 24 तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती आदि 63 महापुरुषों की गणना है। इनमें राम और कृष्ण भी हैं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित नाम से स्वतंत्र ग्रंथ भी हैं। नौवीं सदी में प्राकृत में रचित तिलोयपण्णत्ति में पूरा विवरण उपलब्ध है।
पेरियपुराण पर जैन प्रभाव के संबंध में इतिहास, पुरातत्व की विदुषी प्रो. चंपक लक्ष्मी ने Medieval Bhakti Movements in India नामक अभिनंदन ग्रंथ में अपने निबंध Religion and Social Change in Tamilnadu (c600-1300) में यह मत व्यक्त किया है-"The Saiva hymnists i.e. those who composed the Bhakti hymns, were also of the higher castes but later, in the twelfth century and at the time of the codification of the Saiva canon, a deliberate attempt was made to introduce several fictitious saints in addition to the histotical figures to increase the number to 63, many of whom were drawn from low castes including the paraiya or untouchable. The number 63 was a direct borrowal from the Jain Puranas dealing with the 63 Salakapurusas or great beings." (P. 167)
पेरियपुराण की रचना का एक प्रमुख कारण एक जैन ग्रंथ की लोकप्रियता भी था। वह ग्रंथ था तमिल भाषा के श्रेष्ठ पांच महाकाव्यों में से एक जीवकचिंतामणि जो कि आज भी तमिल में अध्ययन का विषय है। इसमें जैन चरित ग्रंथों के प्रसिद्ध नायक जीवंधर का चरित्र, उनके अनेक विवाह तथा उनके द्वारा यह प्रतिपादन कि सांसारिक जीवन बिताने के बाद भी यदि संयम धारण किया जाए तो कर्म बंधनों से मुक्ति संभव है। जीवंधर हेमांगद देश जो कि कर्नाटक में स्थित माना गया है, के शासक थे। वैराग्य होने पर वे महावीर स्वामी की उपदेश सभा या समवसरण में गए। वहां महावीर के प्रमुख शिष्य या गणधर सुधर्म स्वामी ने उन्हें मुनि दीक्षा दी थी। वे विपुलाचल से संसार बंधनों से मुक्त हुए। चोल शासक कुलोत्तुंग को उक्त चरित की प्रसिद्धि से चिंता हुई। इसलिए उसने पेरियपुराणम् की रचना कार्रवाई उपर संदर्भित पुस्तक में भी एन. सुब्रमण्यम् ने पृ.-185 पर लिखा है, "The story of the circumstances under which the Periyapuranam was written, as tradition has it, indicates the Cola king's anxiety to stop the spreading influance of Jainism made him encourage Sekkilar in the composition of the account of the lives of the Nayanmars." जगहों के नाम
__ अयोध्या, उज्जैन, नागपुर, उरैयूर, नागपट्टिणम् जैसे स्थल-नाम सांस्कृतिक महत्व की सूचना देते हैं। केरल में भी जगहों के ऐसे नाम हैं जो यह सूचित करते हैं किसी
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