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सूरिमंत्र और उसकी महत्ता
यद्यपि मैंने जीवन में अनेकों बार महाव्रती मुनिराजों के अभाव में प्रतिमाओं को दिगम्बर होकर सूरिमंत्र दिए हैं मुझे नहीं लगता कि यह गलत है। क्योंकि सूरिमंत्र का पाठ अंतरंग बहिरंग परिग्रह का कुछ समय के लिए त्याग कर मूर्ति का संस्कार किया गया है। सूरि मंत्र देना भी एक संस्कार की ही क्रिया है। मेरे देखने में यह नहीं आया कि किसी आगम में आचार्य ने ऐसा कहीं उल्लेख किया हो कि सूरिमंत्र किस विधि से कौन, कैसे दे। अगर परम्परागत सूरिमंत्र प्रतिमा में देने की बात आई है तो मेरी दृष्टि में भी यह अच्छी परम्परा है कि सम्पूर्ण संस्कारों के बाद प्रतिमा में एक निर्ग्रन्थ सूरिमंत्र दें इससे दो लाभ हैं एक तो निर्ग्रन्थ जिन प्रतिमा की तीर्थंकर जैसी सम्पूर्ण पात्रता के लिए सूरिमंत्र से आभाषित करना। दूसरे महाव्रताचरण जैसा महामार्गी पूज्य व्यक्ति ही महाव्रताचरण की अंतिम श्रेणी में अवस्थित होने की पात्रता का संस्कार दे। इस दृष्टि से भी सार्थक है। लेकिन महाव्रती के अभाव में प्रतिष्ठाचार्य संस्कारित करें! इसमें मेरी दृष्टि में कहीं दोष नहीं है।
सहायक ग्रंथ
प्रतिष्ठातिलक
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10. प्रतिष्ठा कल्प
प्रतिष्ठा पाठ
प्रतिष्ठा दीपक
प्रतिष्ठा पाठ
प्रतिष्ठा सारोद्धार
जिनेन्द्र कल्याणाभ्युदय
प्रतिष्ठाकल्प जिनसंहिता
प्रतिष्ठा सारोद्धार
11. प्रतिष्ठादर्श
12. प्रतिष्ठा पाठ
13. प्रतिष्ठासार संग्रह
14. प्रतिष्ठा चन्द्रिका
15. प्रतिष्ठा विधि दर्पण
16. प्रतिष्ठा प्रदीप
17. प्रतिष्ठा रत्नाकर 18. प्रतिष्ठा दिवाकर अन्य ग्रंथ
19. पंचसंग्रह
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