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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
दूसरे शृंग लाल मटमैले पत्थर के हैं। मानसरोवर की ओर से इसकी चढ़ाई डेढ़ मील की है। यह बहुत कठिन है। कैलाश के शिखर के चारों ओर कोनों में ऐसी मंदिर आकृतियां स्वतः बनी हुई हैं, जैसे बहुत मन्दिरों के शिखर पर चारों ओर बनी होती हैं। तिब्बत की ओर से यह पर्वत ढलान वाला है। उधर तिब्बतियों के बहुत से मन्दिर बने हैं। तिब्बत के लोगों में कैलाश के प्रति बहुत श्रद्धा है। लिंग पूजा शब्द का प्रचलन तिब्बत से प्रारम्भ हुआ है। तिब्बती भाषा में लिंग का अर्थ क्षेत्र है।
कलं
सन्दर्भ: 1. इत्थं कृत्वा समर्थं भवजलधिजलोत्तारणे भावतीर्थ
कल्पान्तस्थायि भूयस्त्रिभुवनहितकृत् क्षेत्रतीर्थं स कर्तुम्। स्वाभाव्यादारुरोह श्रमणगणसुरवातसम्पूज्यपादः
कैलाशाख्यं महीधं निषधमिववृषादित्य इद्धप्रभाढ्यः।। तस्मिन्नद्रौ जिनेन्द्रः स्फटिकमणिशिलाजालरम्ये निषण्णो
योगानां सन्निरोधं सह दशभिरथोयोगिनां यैः सहस्रैः। कृत्वा कृत्वान्तमध्ये चतुरपरमहाकर्मभेदस्यशर्म
स्थानं स्थानं स सैद्धं समगमदमलस्रग्धराभ्यय॑मानः।। 81 (हरविंशपुराण 12/80-81) 2. वही, 13/6.
वही, 13/28-29. पद्मपुराण 9/104-153. राज्ञप्याज्ञापिता यूयं कैलाशे भरतेशिना। गृहाः कृताः महारत्नैः चतुर्विंशतिरहेताम्। तेषां गङ्गां प्रकुर्विध्व परिखां परितो गिरिम्। अति तेऽपि तथा कुर्वन् दण्डरत्नेन सत्वरम्।।
- उत्तरपुराण - 48/107-108. निर्वाणगमनं तेषां श्रुत्वा निर्विण्णमानसः। वरदत्ताय दत्त्वात्मराज्यलक्ष्मी भगीरथः।। कैलाशपर्वते दीक्षां शिवगुप्तमहामुनेः। आदायप्रतियोगधार्यभृत स्वर्धनीतटे॥ सुरेन्द्रेणास्य दुग्धाब्धिपयोभिरभिषेचनात्। क्रमयोस्तत प्रवाहस्य गङ्गायाः संगमे सति।। तदा प्रभृति तीर्थत्वं गङ्गाप्यस्मिन्नुपागता।
कत्वोत्कष्टं तपो गङ्गातटेऽसौ निर्वतिंगतः।। - उत्तरपुराण - 48/138-141. 7. देखिये, डॉ. विद्याधर जोहारपुरका द्वारा सम्पादित तीर्थवन्दनसंग्रह। आदिपुराण प्रथम पर्व। 8. पुण्यास्रव कथाकोश, कथांक 26-27.
पुण्यास्रव कथाकोश, कथांक 34. 10. वही, कथांक 47. 11. सुखबोधा पत्र सं. 155.
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