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________________ तीर्थंकर ऋषभदेव का निर्वाण स्थल डॉ. रमेशचन्द्र जैन* भगवान ऋषभदेव के निर्वाण स्थल के विषय में तिलोयपण्णत्ती में निम्नलिखित गाथा प्राप्त होती है माघस्स किण्ह चोद्दसि-पुव्वण्हे णियय जम्म णक्खत्ते। अट्ठावयम्मि उसहो अजुदेण समं गओ मोक्खं।।1196 ऋषभदेव माघकृष्ण चतुर्दशी के पूर्वाह्न में अपने जन्म (उत्तराषाढा) नक्षत्र के रहते अष्टापद (कैलाश पर्वत) से दस हजार मुनिराजों के साथ मोक्ष गए। आचार्य कुन्दकुन्द ने निर्वाणभक्ति में लिखा है अट्ठावयम्मि उसहो चंपाए वासुपुज्ज जिणणाहो। उज्जंते णेमिजिणो पावाए णिव्वुदो महावीरो।। निर्वाण भक्ति-1 अष्टापद पर ऋषभनाथ, चम्पापुर में वासुपूज्य जिनेन्द्र, ऊर्जयन्त गिरि (गिरनार पर्वत) पर नेमिनाथ और पावापर में महावीर स्वामी निर्वाण को प्राप्त हुए। यहाँ यह भी कहा गया है णायकुमार मुणिंदो बालिमहाबालि चेव अज्झेया। अट्ठावयगिरिसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसिं।। निर्वाणभक्ति-15 नागकुमार मुनिराज, बाली और महाबाली अष्टापद पर्वत के शिखर पर निर्वाण को प्राप्त हुए। उन्हें नमस्कार हो। आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में कहा है - मुनिगण और देवों के समूह से पूजित चरणों के धारक श्री वृषभजिनेन्द्र संसार रूपी सागर के जल से पार करने में समर्थ रत्नत्रय रूप भावतीर्थ का प्रवर्तन कर कल्पान्तकाल तक स्थिर रहने वाले तथा त्रिभुवन जनहितकारी क्षेत्र तीर्थ को प्रवर्तन के लिए स्वभाववश (इच्छा के बिना ही) कैलाश पर्वत पर उस तरह आरूढ़ हो गए, जिस तरह कि देदीप्यमान प्रभा का धारक वृष का सूर्य निषधाचल पर आरूढ़ होता है। स्फटिक मणि की शिलाओं के समूह से रमणीय उस कैलाश पर्वत पर आरूढ़ होकर भगवान ने एक हजार राजाओं के साथ योग निरोध किया और अन्त में चार अघातिया कर्मों का अन्तकर निर्मल मालाओं के धारक देवों से पूजित हो अनन्त सुख के स्थलभूत मोक्ष स्थान को प्राप्त किया। * जैन मन्दिर के पास, बिजनौर, उ.प्र. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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