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________________ आगम और आधुनिक परिप्रेक्ष्य में श्रमणाचार डॉ. श्रेयांसकुमार जैन* जैनागम में श्रमण के आचार को निश्चय-व्यवहारचारित्र के रूप में प्रतिपादित किया गया है। निश्चय चारित्र के बिना मक्ति असम्भव है। अतः आचार्यों ने निश्चयचारित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है किन्तु निश्चयचारित्र की प्राप्ति व्यवहार चारित्र के बिना नहीं हो सकती है, सो व्यवहार चारित्र को भेदों सहित आगम में निरूपित किया है। आचार्य श्री कुन्दकुन्द निश्चयचारित्र की विवक्षा से चारित्र को समझाते हैं: चारित्तं खलु धम्मो धम्मो जो सो समोत्ति णिद्दिट्ठो। मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो हु समो।।7।। - प्रवचनसार चारित्र ही धर्म है तथा वह चारित्र समताभावरूप कहा गया है। मोह और क्षोभ से रहित आत्मा का परिणाम ही समता है। यहाँ मोह और क्षोभ दोनों शब्द विचारणीय हैं। आचार्य मोह शब्द को दर्शन मोह के अर्थ में प्रयुक्त कर रहे हैं और चारित्रमोह के अर्थ में क्षोभ शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। कारण यह है कि समता रूप चारित्र दशम गुणस्थान तक उत्पन्न नहीं हो सकता है, क्योंकि दशम गुणस्थान पर्यन्त चारित्रमोहनीयकर्म का उदय रहता है। जैसा कि आचार्य श्री अमृतचन्द्रसूरि ने उक्त गाथा की टीका में ही स्पष्ट किया है- "स्वरूपे चरणं चारित्रं स्वसमयप्रवृत्तिरित्यर्थः। तदेव च यथावस्थितात्मगुणत्वात्साम्यम्। साम्यं तु दर्शनचारित्र-मोहनीयोदयापादितसमस्तमोहक्षोभाभावादत्यन्तनिर्विकारो जीवस्य परिणामः"। ___ अर्थात् स्वरूप में रमण करना सो चारित्र है। स्वसमय में प्रवृत्ति करना यह इसका अर्थ है वही वस्तु का स्वभाव होने से धर्म है। शुद्ध चैतन्य का प्रकाश करना यह इसका अर्थ है। वही यथावस्थित आत्मगुण होने से (विषमता रहित सुस्थित आत्मा का गुण होने से) साम्य है और साम्य, दर्शनमोहनीयकर्म तथा चारित्रमोहनीयकर्म के उदय से उत्पन्न होने वाले समस्त मोह और क्षोभ (रागद्वेष) के अभाव के कारण से अत्यन्त निर्विकार जीव का परिणाम है। यहाँ मोह की अभाव दशा में निश्चयचारित्र को बताने से स्पष्ट होता है कि शुद्ध निश्चयचारित्र उपशान्तमोह और क्षीणमोह की अवस्था में होता है। यथाख्यातचारित्र ही शुद्ध निश्चयचारित्र है। इसमें मोह के चिह्न न होने के कारण जीवात्मा में विशुद्धि विशेष होती * अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, दि. जैन कॉलेज, बड़ौत (बागपत)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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