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राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का भाषण
वैशाली में प्राकृत शोध संस्थान का शिलान्यास करते समय (23 अप्रैल, 1956 )
यह बिहार का सौभाग्य है कि उसका अतीत प्राचीन भारत के इतिहास की पृष्ठभूमि है। इतिहासकालीन भारत के जीवन को समझने के लिए बिहार को समझना आवश्यक है। हमारे गौरवमय अतीत से सम्बन्धित जितने भी प्रमुख स्थल बिहार में हैं, वैशाली निस्सन्देह उनमें से एक है। यह नगरी लिच्छवियों और वज्जियों के गणराज्य की राजधानी थी। प्राचीन काल में गणराज्य अथवा प्रजातन्त्र का यह स्थान प्रसिद्ध केन्द्र था। एक समय था जब इस भूमि में किसी राजा का शासन नहीं था, जनता के सात हजार से अधिक प्रतिनिधि सारा राजकाज चलाते थे और न्याय का विधान इतना सुन्दर था कि स्वयं भगवान् बुद्ध ने अपने मुख से उसकी प्रशंसा की थी। निश्चय ही लोक शासन की सारी चेतना यहाँ मूर्तरूप से देखी जाती थी।
इसके अतिरिक्त वैशाली भगवान् महावीर की जन्मभूमि है और भगवान् बुद्ध को भी बहुत प्रिय थी। स्वयं बुद्ध भगवान् ने इस स्थान को बार-बार अपनी चरण रज देकर पावन बनाया था और इसकी सभा की देवताओं की सभा से तुलना की थी। वैशाली से जो सद्-विचारधारा प्रवाहित हुई उससे समस्त भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के निकटवर्ती देश भी लाभान्वित हुए। इसलिए वैशाली का स्थान हमारे प्राचीन इतिहास में महत्त्वपूर्ण है। मैं समझता हूँ कि प्राकृत अनुसंधानशाला के लिए यह स्थान ही सबसे अधिक उपयुक्त है। हमारे सांस्कृतिक जीवन में और इतिहास के अध्ययन में यह अनुसंधानशाला एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति करेगी।
इस अनुसंधानशाला में जैन साहित्य और प्राकृत ग्रन्थों के संबंध में अनुसंधान और अध्ययन की व्यवस्था होगी। संस्कृति की दृष्टि से ही नहीं, भारतीय इतिहास और चिन्तन की दृष्टि से भी, इस दिशा में प्रयास का विशेष महत्त्व है। चार वर्ष हुए, दिल्ली में प्राकृत ग्रन्थों के प्रकाशन के लिए प्राकृत ग्रन्थ परिषद् की स्थापना हुई थी। मैं समझता हूँ कि उस परिषद् का कार्य-क्षेत्र इतना विस्तृत नहीं कि वह प्रस्तावित अनुसंधानशाला द्वारा किये जानेवाले कार्य का भार भी सँभाल सके।
प्राकृत ग्रन्थ परिषद् से मेरा संबंध सौभाग्य से उसी समय से है जब उसकी स्थापना हुई थी । प्राकृत भाषा में लिखित ग्रन्थों की खोज और टीका सहित उनके प्रकाशन के संबंध में मेरा सदा यह विचार रहा है कि यह कार्य इतिहास, साहित्य और संस्कृति की दृष्टि से
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