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________________ जैन दर्शन में मन एक तुलनात्मक अध्ययन डॉ. नेमिचन्द्र जैन* संसार में रहने वाला प्राणी शरीर और आत्मा सहित होता है। प्राणी उसे कहते हैं, जिसके प्राण होते हैं। जैन दर्शन में आचार्यों ने मूलतः चार प्राण माने हैं परन्तु भेद करने पर दश प्राण माने गये । यथा तिक्काले चदुपाणा इन्दियबलमाउआणपाणो य व्यवहारो सो जीवो णिच्चयणयदो दु चेदणा जस्स।। - द्रव्यसंग्रह, गा. 3 मूलतः इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये चार प्राण हैं जिसके ये प्राण होते हैं उसे व्यवहार नय से प्राणी या जीव कहते हैं। निश्चय नय से जिसमें चेतना होती है वह जीव है। इन्द्रियां पाँच, मनबल, वचनबल, काय (शरीर) बल, आयु और श्वासोच्छ्वास कुल दस प्राण माने गये हैं। जिनके इनमें से कोई भी प्राण एवं आत्मा होती है तो उसे जीवित प्राणी कहा जाता है। प्राण का संबंध शरीर से होता है अतः वे सब जड़ तत्व के अन्तर्गत आते हैं। चेतना सहित प्राण धारण करने वाले को प्राणी कहा जाता है और जीवित माना जाता है। जिनका अपना-अपना स्वतंत्र अस्तित्व एवं कार्य होता है उसे इन्द्रिय कहते हैं। आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थ सूत्र में लिखा है: पञ्चोन्द्रियाणि - सूत्र 15 / अ. 2, स्पर्शनरसन - घ्राण- चक्षुश्रोत्राणि, सूत्र 19 / अ. 2 जैन दर्शन में संसारी जीव दो प्रकार के माने गये हैं त्रस एवं स्थावर-संसारिणस्त्रसस्थावराः त.सू.अ.2, सू. 121 स्थावर नाम कर्म के उदय से प्राप्त हुई अवस्था विशेष को स्थावर कहते हैं ऐसे जीव पाँच प्रकार के होते हैं। पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति काय इन सबके मात्र एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है और प्राण चार होते हैं जैसे स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास । त्रस नाम कर्म के उदय से दो इन्द्रिय से पांच इन्द्रियतक के जीव त्रस हैंद्विन्द्रियादयस्त्रसाः त. सू.अ.2-14 दो इन्द्रिय जीव के 6 प्राण होते हैं- स्पर्शन, रसना, कायबल, वचनबल, आयु और श्वासोच्छ्वास। जैसे-लट्, शंख, जोंक, केंचुआ आदि । तीन इन्द्रिय जीव के 7 प्राण होते हैं। स्पर्शन, रसना, घ्राण, कायबल, वचनबल, आयु और श्वासोच्छ्वास, जैसे- चींटी, चीटा आदि। चार इन्द्रिय जीव के आठ प्राण होते हैं। स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कायबल, * सेवानिवृत्त प्राचार्य, गुरुकुल रोड, खुरई । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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